जीएसटी को लेकर फार्मा कंपनियों की जांच का दायरा बढ़ेगा

नई दिल्ली। जीएसटी को लेकर फार्मा कंपनियों की जांच का दायरा बढऩे जा रहा है। बताया गया है कि जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) दवा कंपनियों द्वारा बकाया भुगतान न करने के संदेह में कर चोरी की जांच तेज करेगा।

डीजीजीआई पहले से भेजे गए नोटिसों के अलावा कई और कंपनियों से यह भी पूछेगा कि चालू वर्ष में उन्होंने कर का कम भुगतान क्यों किया। सूत्रों के अनुसार ये नोटिस ब्रांड ट्रांसफर बिक्री पर जीएसटी का भुगतान न करने, एक्सपायर हो चुकी दवाओं और व्यावसायिक सहायता सेवाओं पर फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा करने और रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत भुगतान न करने से संबंधित हो सकते हैं।

नोटिसों में दर्शाया गया कि संयुक्त कर देनदारी करीब 1,000 करोड़ रुपये है और अब तक दवा कंपनियों ने 450-500 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है। एक अधिकारी ने कहा कि यह भुगतान वित्त वर्ष 23 और वित्त वर्ष 24 में जारी किए गए नोटिसों के लिए है। इस साल भी ऐसे और नोटिस जारी किए जाएंगेे।

इन फार्मा ने नहीं दिया जवाब

अधिकारी के अनुसार सभी प्रमुख दवा निर्माताओं को नोटिस भेजे गए हैं। इनमें सन फार्मा, मैनकाइंड फार्मा, ज़ाइडस हेल्थकेयर, सिप्ला आदि कंपनियों ने ईमेल का अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।

एक्सपायर दवाओं के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट रिवर्सल का मुद्दा

आरएसएम इंडिया के निदेशक सिद्धार्थ सुराना ने कहा कि जारी किए गए नोटिसों में एक आम मुद्दा एक्सपायर हो चुकी दवाओं के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट रिवर्सल का है। आमतौर पर, जब दवाइयां स्टॉकिस्टों को भेजी जाती हैं, तो वे एक्सपायरी डेट के साथ आती हैं। अगर स्टॉकिस्ट इन दवाओं को एक्सपायर होने से पहले बेचने में विफल रहते हैं, तो वे उन्हें फार्मा कंपनियों को वापस कर देते हैं, जो फिर इन उत्पादों को अपनी पुस्तकों में लिख देती हैं। जीएसटी अधिकारियों का तर्क है कि जिन मामलों में दवाओं को लिखा जाता है, उन दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल पर इनपुट टैक्स क्रेडिट को उलट दिया जाना चाहिए।

बताया गया है कि निचले स्तर के अधिकारियों की जीएसटी माँगों का अनुपालन नहीं करने पर दवा कंपनियाँ को जुर्माना और दंड सहित कानूनी कार्रवाइयों का सामना करना पड़ सकता है।