नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड-19 के इलाज में मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज- कैसिरिविमैब और इमडेविमैब के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। डॉक्टर्स का कहना है कि WHO के अप्रूवल के बाद इसकी मांग और स्वीकार्यता बढ़ेगी। मैक्स हेल्थकेयर में इंटरनल मेडिसिन के डायरेक्टर, डॉ संदीप बुद्धिराजा ने कहा,’अभी तक हमें इसे उन्हें हल्के लक्षणों वाले ऐसे कोविड मरीजों पर इस्तेमाल कर रहे थे जिनमें गंभीर बीमारी डिवेलप होने का खतरा था।
WHO की नई गाइडलाइंस कहती हैं कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का इस्तेमाल गंभीर मरीजों पर भी हो सकता है, यह अहम है।’भारत में यह कॉकटेल ‘रोनाप्रीव’ ब्रैंड नेम से ‘सीमित इस्तेमाल’ के लिए उपलब्ध है। मैक्स हेल्थकेयर के अलावा अपोलो, मैक्स, फोर्टिस और सर गंगाराम अस्पताल जैसे निजी अस्पतालों में भी यह इलाज उपलब्ध है। अपोलो अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ राजेश चावला के अनुसार, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज थिरैपी भारत में रोचे नाम की कंपनी आयात रकती है। भारत में रोनाप्रीव इम्पोर्ट करने वाली रोचे के एक प्रवक्ता ने कहा कि हर मरीज के लिए थिरैपी की एक डोज – 1,200 mg की कम्बाइंड डोज (600 mg कैसिरिविमैब और 600 mg इमडेविमैब) के दाम 59,750 रुपये रखे गए हैं।
यह एंटीबॉडी कॉम्बो अमेरिका की प्रमुख दवा कंपनी रीजेनेरॉन ने तैयार किया है। WHO ने ताजा गाइडलाइंस में कहा कि कोविड के हल्के और गंभीर मरीजों के इलाज में इनका इस्तेमल किया जा सकता है। कोरोना संक्रमित होने पर पूर्व अमेरिकी राट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी यही दवा दी गई थी। बता दें कि जब भी कोई इन्फेक्शन होता है तो शरीर का इम्युन सिस्टम खुद एंटीबॉडीज बनाता है। यह एक तरह का प्रोटीन होता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को लैब में बनाया जाता है। इनका डिजाइन ऐसा होता है कि ये शरीर के इम्युन सिस्टम की नकल करता है या उसकी क्षमता बढ़ा देता है।
कोविड से पहले मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का इस्तेमाल इबोला और रेबीज जैसे कई वायरस इन्फेक्शंस के इलाज में होता रहा है।रोचे के प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने भारत में रोनाप्रीव के एक लाख पैक्स (दो लाख डोज) उपलब्ध कराए हैं। इनके डिस्ट्रीब्यूशन का जिम्मा सिप्ला के पास है। कई डॉक्टर्स और हेल्थ ऐक्टिविस्ट्स का कहना है कि इस थिरैपी के व्यापक इस्तेमाल के लिए दाम कम करने की जरूरत है। WHO ने भी ऐसी ही अपील की है।