नई दिल्ली। सरकारी अस्पताल और प्राइवेट में इलाज के रेट में भारी असमानता पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस असमानता पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार को 14 साल पुराना कानून लागू करने में नाकाम रहने के लिए फटकार लगाई है।

बता दें कि सरकारी अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने में एक आंख के लिए लगभग 10,000 रुपये तक का खर्च आ सकता है, जबकि निजी अस्पताल में यह खर्च 30,000 रुपये से 1,40,000 रुपये तक जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्लिनिकल स्थापना नियम के अनुसार, राज्यों के साथ विचार-विमर्श करके महानगरों, शहरों और कस्बों में इलाज के लिए एक मानक दर तय की जानी चाहिए थी।

सीजीएचएस- निर्धारित नियम लागू किया जाएगा

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने इस बारे में राज्यों को कई बार लिखी, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार है। केंद्र सरकार इस आधार पर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती।

अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को एक महीने के अंदर मानक दर अधिसूचित करने के लिए राज्यों के अधिकारियों संग बैठक बुलाने को कहा। कहा गया कि अगर केंद्र सरकार इस मामले का हल खोजने में विफल रहती है, तो हम याचिकाकर्ता की सीजीएचएस- निर्धारित मानक दरों को लागू करने की याचिका पर विचार करेंगे।

यह है मामला

सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ वयोवृद्ध मंच फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ ने अधिवक्ता दानिश जुबैर खान के माध्यम से जनहित याचिका दायर की थी। इसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह क्लिनिकल स्थापना नियम, 2012 के नियम 9 के अनुसार मरीजों से वसूली जाने वाली फीस की दर निर्धारित करे।

नियमों के तहत, सभी अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों को अपना रजिस्ट्रेशन बनाए रखने के लिए प्रदान की जाने वाली हर तरह की सेवा के लिए शुल्क और मरीजों के लाभ के लिए उपलब्ध सुविधाओं को प्रमुख स्थान पर स्थानीय भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में जानकारी देनी होगी। केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर राज्य सरकारों के परामर्श से निर्धारित और जारी दरों की सीमा के भीतर प्रत्येक प्रकार की प्रक्रियाओं और सेवाओं के लिए शुल्क ले।