नई दिल्ली
नए वित्त वर्ष यानी एक अप्रैल 2016 से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से जुड़ी नई दवाएं कड़े क्लिनिकल ट्रायल (दवा परीक्षण) के बाद ही मार्केट में बिक्री के लिए आएंगी। सरकार इस संबंध में जल्द एक अधिसूचना जारी करेगी। आयुष विभाग ने तय किया है कि हर नई आयुर्वेदिक दवा को क्लिनिकल ट्रायल से गुजरना होगा।
आयुर्वेद ड्रग्स मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रेजिडेंट पीएम वेरियर ने हालांकि इस पर असंतोष जताया है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक ड्रग सेक्टर में करीब 9,000 यूनिट्स हैं। इनमें से ज्यादातर स्मॉल और माइक्रोलेवल की हैं। उनके पास ऐसी कानूनी शर्तें पूरी करने की क्षमता नहीं है। ऐसे में नए रेग्युलेशंस से कई आयुर्वेदिक उत्पादकों के काम-काज पर असर पड़ेगा।
जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है तब से योग और आयुर्वेद को दुनियाभर में बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री की पहल पर कोई दाग न लगे, इसलिए आयुर्वेद के नाम पर घटिया सामग्री को दवा के रूप में बेचने की हरकत रोकने का निर्णय सरकार ने लिया है।
अप्रैल से विभाग देशभर में सैंपलिंग शुरू कर फर्जी आयुर्वेदिक दवाओं के खिलाफ अभियान शुरू करेगा। फिलहाल ड्रग्स
एंंड कॉस्मेटिक्स ऐक्ट, 1940 और ड्रग्स ऐंड कॉस्मेटिक्स रूल्स 1945 के तहत रेग्युलेटरी प्रावधान लागू हैं। ये आयुर्वेद, सिद्धा, यूनानी और होमियोपैथिक दवाओं के मामले में लागू होते हैं।
सरकार के इस कदम से आयुर्वेद के लिए एक्सपोर्ट मार्केट का दायरा बढ़ सकता है। हालांकि सरकारी तैयारी को देखते हुए इंडस्ट्री में बेचैनी बढ़ गई है। अभी मैन्युफैक्चरर्स को बाजार में नई दवा उतारने से पहले राज्य की अथॉरिटीज से लाइसेंस लेना होता है, लेकिन इसके लिए क्लिनिकल ट्रायल की जरूरत नहीं होती है। इससे मौजूदा रेग्युलेटरी सिस्टम में घालमेल सा रहता है।
भारतीय आयुर्वेदिक दवा का बाजार करीब 8,000 से 9,000 करोड़ रुपये का बताया जाता है। वहीं ऐलोपैथिक दवाओं का बाजार करीब 1,20,000 करोड़ रुपये का है। आयुष विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटी को बताया, ‘आयुर्वेदिक दवाओं के साथ परेशानी यह है कि रेग्युलेटरी स्ट्रक्चर काफी कमजोर है। कई क्लासिकल फॉर्मूलेशन ड्रग्स हैं, जो ड्रग्स ऐक्ट में लिस्टेड हैं और इनका जिक्र प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, लेकिन कई अन्य पेटेंटेड और प्रोपराइटरी ड्रग्स भी हैं, जो हो सकता है कि किसी भी सुरक्षा जांच से गुजरे बगैर मार्केट में पहुंच जाती हों। हम यह सुनिश्चित करने जा रहे हैं कि हर नई दवा को क्लिनिकल ट्रायल से गुजरना होगा और उसके नतीजे के आधार पर ही स्टेट अथॉरिटीज लाइसेंस देंगी। अगले तीन महीनों में इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी हो जाएगा।