दुनिया में ऐसी कई गंभीर और दुर्लभ बीमारियों के इलाज में लोगों के करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं। इन बीमारियों की दवाएं भी विदेशों से मंगवानी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर टाइरोसिनेमिया टाइप-ए। लीवर की दुर्लभ बीमारी है इसका इलाज भी बहुत मुश्किल होता है। बहुत कम व्यक्तियों को ही ये बीमारी होती है। इस बीमारी की दवा कनाड़ा से मंगवानी पड़ती है। इसका सालाना खर्च 2.2 करोड़ रुपए आता है। लेकिन अब इस बीमारी का इलाज भारत में ही हो सकेगा। कनाड़ा से दवा मंगवाने की जरुरत भी नहीं होगी। साथ ही सालाना खर्च भी मात्र 2.5 लाख रुपए ही आयेगी।
भारत ने 13 दुर्लभ बीमारियों की दवाई बनाने पर काम शुरु किया
सरकार ने 13 दुर्लभ बीमारियों की खोज की है जिसमें से चार बीमारियों की दवाई बनाने में भारत को कामयाबी हासिल हुई है। स तरह की कुल सात दुर्लभ बीमारियों के लिए चार दवाई भारत में बननी शुरू हो चुकी है और चार अन्य दवाएं अगले पांच-छह महीने में आ जाएगी। इन दवाइयों को जन औषधि केंद्र में भी पहुंचाने की योजना बनाई गई है। भारत सरकार ने इन बीमारियों का सस्ता इलाज कराने का बीड़ा उठाया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि भारत में बनी इन दवाओं से सिर्फ देश में मरीजों का सस्ता इलाज संभव नहीं होगा, बल्कि पूरी दुनिया को इसका फायदा मिलेगा और कई देशों ने तो भारत से संपर्क करना भी शुरू कर दिया है।
इन दुर्लभ बीमारी की दवा बनाने में भारत को सफलता हासिल हुई
- टायरोसेनिमिया टाइप 1 : सालाना खर्च पहले करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये, अब करीब ढाई लाख रुपये
- Gaucher : ढाई करोड़ से साढ़े 6 करोड़ पहले खर्च, अब कीमत ढाई लाख रुपये
- Wilson : 1.8 से 3.6 करोड़ सालाना खर्च आता था, अब कीमत साढ़े 3 लाख रुपये
- Dravet : करीब 6 से 20 लाख की कीमत सालाना, अब 1 से 5 लाख रुपये
इन चार बीमारियों को लेकर जो दवाई बनाई गई है वो हैं :-
- Nitisinone,
- Eliglusat (3 करोड़ से 2.5 लाख)
- Trientine (2.2 करोड़ से अब 2.2 लाख)
- Cannabidiol (7 से 34 लाख अब 1 से 5 लाख)
इन बीमारियों पर दवाई बनाने का काम जारी :-
- Phenylketonutoria
- Hyperammonemia
- Cytic Fibrosis
- Sickle Cell
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