मुंबई। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर (USFDA) ने भारत की चार प्रमुख फार्मा कंपनियों को उनकी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी के लिए मंजूरी दी है। ये फैसला ऐसे समय में आया है जब कोरोना महामारी से सप्लाई चेन प्रभावित हुई है जो पूरी दुनिया में दवा की कमी का कारण बन गया है। अमेरिका में तीसरी सबसे बड़ी जेनेरिक दवा आपूर्तिकर्ता ल्यूपिन और डॉ. रेड्डी लेबोरेटरीज ने सोमवार को इस्टैब्लिशमेंट इंस्पेक्शन रिपोर्ट (ईआईआर) रिसीव की। ये रिपोर्ट इन कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग प्लांट के अमेरिकी दवा नियामक की जांच को बंद करने का संकेत है। महाराष्ट्र के नागपुर में मौजूद ल्यूपिन की मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी इस वर्ष जनवरी में हुए यूएसएफडीए के इंस्पेक्शन के आधार पर क्लीयर की गई है। ल्यूपिन के प्रबंध निदेशक निलेश गुप्ता ने कहा कि हमें अपनी नागपुर मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी के लिए ईआईआर प्राप्त करने की बहुत खुशी है। वहीं हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डी ने कहा कि कंपनी को तेलंगाना के मिरियालागुड़ा में अपने सक्रिय दवा संयंत्र 5 के लिए ईआईआर मिला है। पिछले हफ्ते, बेंगलुरु स्थित स्ट्राइड्स फार्मा ने कहा था कि यूएसएफडीए ने मार्च में निरीक्षण के बाद उनकी सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी को मंजूरी दे दी। बेंगलुरू के इस प्लांट में टैबलेट, कैप्सूल, मलहम, क्रीम, लिक्विड और कॉम्प्लेक्स जेनेरिक सहित फिनिश्ड डोसेज फॉर्मूलेशन के निर्माण की क्षमता है। बेंगलुरु की एक अन्य कंपनी बायोकॉन को भी यूएसएफडीए ने मंजूरी दी है। बायोकॉन के मलेशिया स्थित उनके इंसुलिन प्लांट को ये मंजूरी मिली है। भारत के बड़े जेनेरिक दवा निर्माताओं को मंजूरी नहीं मिलने के चलते राजस्व में गिरावट का सामना करना पड़ रहा था। इससे उनकी मार्केट वैल्यू में गिरावट देखी गई। भारतीय फार्मा कंपनियों को पिछले 12 महीनों में अपने मार्केट कैप में लगभग एक बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मांगी थी जिसके बाद यूएसएफडीए ने इस दवा को बनाने वाली एक कंपनी IPCA पर से इंपोर्ट बैन हटा दिया।