नई दिल्ली: अमेरिका में करीब डेढ़ दर्जन भारतीय फार्मा कंपनियों पर सांठगांठ कर दवा कीमत ऊंची रखने का आरोप लगाया गया है। इस बाबत आई शिकायतों के बाद 12 और दवा कंपनियों के खिलाफ अमेरिकी जांच का शिकंजा कसा जा सकता है। खास बात ये कि इनमें नामी फार्मा कंपनियां जैसे सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, ग्लेनमार्क और जाइडस के नाम शामिल हैं। इससे पहले अरबिंदो, टेवा और माइलान समेत छह जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियों को भी इसके दायरे में रखा गया था। भारतीय फार्मा कंपनियों का अमेरिका के जेनेरिक दवा बाजार के एक बड़े हिस्से पर कब्जा है। जानकारी के मुताबिक, किसी दवा पर उसके आविष्कारक का पेटेंट समाप्त होने के बाद वह जेनेरिक बन जाती है। ऐसी दवा का निर्माण कोई भी कंपनी कर सकती है।
वॉशिंगटन के अटॉर्नी जनरल (एजी) बॉब फर्गुसन ने बयान जारी कर कहा है कि उनके साथ 45 राज्यों के एजी ने संघीय अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इसमें कोर्ट से लंबित शिकायतों की जांच का दायरा बढ़ाने का अनुरोध किया गया है। दायरे में आने वाली कंपनियों को छह से बढ़ाकर 18 और प्रभावित दवाओं की संख्या को दो से बढ़ाकर 15 करने की मांग की है। इसमें एक्टाविस होल्डो, एक्टाविस फार्मा, एसेंड लेबोरेटरीज, एपोटेक्स कॉर्प, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, एमक्योर फार्मा, ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स, लैननेट कंपनी, पार फार्मा सैंडोज, सन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज और जाइडस फार्मा (यूएसए) का नाम है।
अमेरिकी राज्यों का आरोप है कि इन कंपनियों ने प्रतिस्पर्धा संबंधी एंटी-ट्रस्ट कानूनों का उल्लंघन करके कृत्रिम रूप से दवाओं के दाम बढ़ाए हैं। प्रतिस्पर्धा कम रखने के लिए वे जेनरिक दवा बाजार को आपस में बांटने पर राजी हो गईं। कुछ दवाओं के दामों में एक हजार फीसदी तक का उछाल देखा गया। बयान के मुताकिब, यदि कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होती तो जेनेरिक दवाओं के दाम 80 फीसदी तक नीचे आ सकते थे। कंपनी इस मामले में सभी अमेरिकी नियामकों और एजेंसियों को पूरा सहयोग करेगी। वर्ष 2015 में अमेरिका में 74.5 अरब डॉलर (करीब 4,76,800 करोड़ रुपये) की जेनेरिक दवाएं बिकी थीं। डॉ. रेड्डीज का कहना है कि उसे अमेरिकी न्याय विभाग की ओर से जारी जांच के बारे में जानकारी है। माइलान ने अपने बयान में कहा कि उसे अपनी तरफ से जांच करने पर ऐसा कोई सबूत नहीं मिला। अन्य कंपनियों की तरफ से फिलहाल प्रतिक्रिया नहीं आई है।