नई दिल्ली। देश के नामी निजी और सरकारी अस्पतालों में बनी दवा दुकानों पर दाम का खेल आखिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। आम तौर पर अस्पतालों में संचालित होने वाली दवा दुकानों पर खरीदारों को रियायत नहीं दी जाती है। ऐसे ही एक मामले में अपनी मां के इलाज के लिए आवश्यक दवाओं की अत्यधिक कीमतों के खिलाफ कानून के एक छात्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उसने अस्पतालों में स्थित दवाइयों की दुकान से ही दवा खरीदने के लिए मरीजों को बाध्य नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि दवाओं व मेडिकल उपकरणों की कीमतें दवा निर्माताओं की सांठगांठ से बढ़ा दी जाती हैं। न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने इस याचिका पर केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। इन सभी से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है। याचिका में बताया गया कि अस्पतालों में मरीजों की स्थिति और अज्ञानता का लाभ उठाते हुए लोगों को अस्पताल की ही दवा दुकानों से दवाएं खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है।
यहां बाइसेल्टिस इंजेक्शन अधिकतम खुदरा मूल्य 61,132 रूपये पर बेचा जा रहा है, जबकि बाजार में यही रियायत के साथ 50,000 रुपये में मिल जाता है। यही नहीं, इसकी निर्माता कंपनी मरीज सहयोग कार्यक्रम के तहत चार इंजेक्शन खरीदने पर मरीज के लिए एक इंजेक्शन मुफ्त देती है। एक इंजेक्शन मुफ्त मिलने की स्थिति में एक इंजेक्शन की कीमत करीब 41 हजार रुपए ही पड़ती है, जबकि इसका अधिकतम खुदरा मूल्य 61,132 रूपये है। याचिकाकर्ता ने अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि मरीज अपनी पसंद की दुकानों से दवा, मेडिकल उपकरण और दूसरे चिकित्सीय सामान खरीदने के लिए स्वतंत्र होंगे और अस्पताल उन्हें सिर्फ अपनी ही दुकानों से खरीदारी के लिए बाध्य नहीं कर सकते। याचिका में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि वे मरीजों और दवा, मेडिकल उपकरण और दूसरे चिकित्सीय सामान खरीदने वालों के हितों की रक्षा के लिए इस तरह के गोरखधंधे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए।