बालाघाट। कोरोना की दूसरी लहर में आयुर्वेद दवा त्रिकुट चूर्ण के साथ आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति ने पूरे प्रदेश में कोरोना को काबू करने में बड़ी भूमिका निभाई है जिसकी वजह से बालाघाट जिले में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति विश्वास बढ़ने के कारण ज्यादातर जिलेभर के लोग आयुर्वेद दवाखानों में पहुंच रहे हैं, लेकिन आयुर्वेद अस्पतालों में लगभग डेढ़ सालों से दवा नहीं आने के कारण आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से इलाज कराने वाले मरीज बैरंग वापस जा रहे है।
जबकि वनों से अच्छादित आदिवासी बाहुल्य जिला होने के कारण अधिकतर लोग प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर निर्भर है। उसके बावजूद आयुर्वेद दवाओं का खत्म होना आम जनता के लिए तकलीफदेह है आयुर्वेद चिकित्सा से इलाज कराने वाले मरीजों का कहना है कि आयुर्वेदिक इलाज स्थायी रूप से होने के साथ असरकारक होता है। इसी वजह से आयुर्वेद दवाओं में विश्वास करके इलाज कराने वाले मरीज मजबूरी में बाजार से दवा खरीद अपना इलाज करा रहे हैं।
बता दें कि बुखार में उपयोगी संजीवनी वटी, उदर व मौसमी बीमारी में उपयोगी त्रिफला चूर्ण, त्रिकुट चूर्ण, वायरल में काम आने वाला कालमेघ चूर्ण का अभाव है। इसी प्रकार यकृत रोग में उपयोगी भूमियालकी चूर्ण, उदर रोग में उपयोगी लवण भास्कर चूर्ण, सिर दर्द व बुखार में उपयोगी श्रसूल हरवटी, बुखार व श्वांस रोग में काम आने वाली लक्ष्मी विलास, मूत्र रोग में प्रयुक्त होने वाली श्वेत परपटी, वात रोग में उपयोगी महारास्नादि क्वाथ, खांसी जुकाम में उपयोगी शीतोप्लादी चूर्ण, अम्ल पित्त में काम आने वाली अविपत्तीकर चूर्ण व घावों पर लगाने के लिए काम आने वाला ज्यात्यादि तेल सहित अनेक जन उपयोगी साबित होने वाली आयुर्वेद दवाइयों का सालों से अभाव बना हुआ है।
बालाघाट के जिला आयुष अधिकारी -शिवराम साकेत ने बताया कि मार्च 2020 से आज दिनांक तक कोरोना से जुड़ी दवाइयों को छोड़कर अन्य कोई भी दवाएं जिले को प्राप्त नहीं होने के चलते परेशानी आ रही हैं। हमारे द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को इस सदर्भ में अवगत करा दिया गया है जल्द ही दवाए जिले में आने की संभावना है। बालाघाट जिले में 58 औषाधालय है। जहां 50 आयुर्वेद, छह होम्योपैथिक दवाओं, एक यूनानी चिकित्सा का एवं एक आयुष विंग औषाधालय है। जिले में कुछ जगह सालों से चिकित्सकों और दवाओं की कमी के चलते कई आयुर्वेदिक औषधालयों के हाल बेहाल है।
अधिकतर केंद्रों में दवाएं नहीं रहने से लोगों को होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक व यूनानी चिकित्सा पद्धति का लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में आयुष चिकित्सा पध्दति को अब संजीवनी की दरकार है। एक समय था कि लोगों को एलोपैथिक से अधिक आयुष चिकित्सा पद्धति पर विश्वास था। सस्ते खर्च में लोगों की बीमारी ठीक हो जाती थी, परंतु अब लोग आयुष चिकित्सा पद्धति के बारे में सिर्फ सोच ही सकते हैं। आयुष चिकित्सा पद्धति का लाभ नहीं मिलने से गरीब तबके के लोग खासा परेशान है। आयुर्वेद औषधालय में सरकार द्वारा निश्शुल्क दी जाने वाली दवाओं की कमी होने के कारण इलाज कराने आने वाले मरीजों को बाहर से महंगे दामों में दवा खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।