कानपुर (उप्र)। आने वाले समय में मरीजों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएं केवल उनका मर्ज ही दूर करेंगी। इन दवाओं का किडनी व लिवर जैसे अंगों पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। यूएस, यूके, फ्रांस व जर्मनी समेत अन्य देशों में वैज्ञानिकों ने ऐसी दवाएं तैयार कर ली हैं। भारत में भी इन दवाओं के जरिए मरीजों का इलाज शुरू हो गया है, लेकिन अभी इन्हें और प्रभावी व सस्ती बनाने की जरूरत है। अभी जो टारगेटेड मेडिसिन बाजार में आ रही हैं, वह बहुत कीमती हैं।
पीएसआइटी इंस्टीट्यूट के फार्मेसी विभाग में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय की ओर से प्रायोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में फॉर्मेसी कंपनी के निदेशक डॉ. गोविंद शंकर पांडेय ने बताया कि ऐसी दवाएं बनाई जा चुकी हैं जो संक्रमण खत्म करने के नैनो ट्यूब के जरिए शरीर में भेजी जाती है। यह नैनो ट्यूब इतनी सूक्ष्म व मेडिसिन की मात्रा इतनी कम होती है कि इसका असर अंगों पर बहुत सीमित रहता है। कैंसर व ट्यूमर जैसे रोगों में यह टारगेटेड मेडिसिन काफी कारगर है। विदेशों के शोध केंद्रों पर ऐसे नैनो कैप्सूल विकसित किया जा रहा है जिसमें भरी दवा शरीर में नैनो ट्यूब के जरिए पहुंचाई जाती है। ऐसी दवाएं बनाने के लिए नैनो टेक्नोलाजी, कांप्लेक्स इंजेक्टेबल्स, इफेक्ट माइक्रोस्फियर्स का प्रयोग किया जाता है। इन दवाओं में इस्तेमाल किए जाने वाले नैनो उपकरणों का आकार 1 से 100 नैनोमीटर के करीब होता है। सम्मेलन के विशेष अतिथि एमिटी यूनिवर्सिटी ग्वालियर के फॉर्मेसी इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. एएन नागप्पा ने बताया कि आविष्कार को पेटेंट कराना जरूरी है। छात्रों को चाहिए कि अपनी रिसर्च पूरी होने के बाद वह उसे तुरंत पेटेंट कराएं, जिससे वह आपकी मिल्कियत रहे। उन्होंने बताया कि हमारे देश में दवाएं अन्य देशों की अपेक्षा सस्ती हैं, यह फार्मेसी का योगदान है। नई तकनीक विकसित करके हमारे वैज्ञानिक उन दवाओं को भी सस्ता करने की दिशा में काम कर रहे हैं जिनकी आम आदमी को बेहद जरूरत है।