इंदौर। रुपए के मुकाबले डॉलर की लगातार बढ़ती कीमतों से प्रदेश की फार्मा कंपनियां सकते में हैं। उनके उत्पादन में 25 से 30 फीसदी की गिरावट आई है। डॉलर 74 रुपए के लगभग होने से दवा निर्माण के लिए जरूरी आयातित कच्चे माल (रसायन व केमिकल्स) की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। बड़ी कंपनियां तो सह रही हैं, लेकिन छोटी कंपनियों की हालत खराब है। वे महंगा माल नहीं खरीद पा रही हैं। प्रदेश में करीब 150 दवा कंपनियां हैं। इनमें से करीब 125 इंदौर के सांवेर रोड, पोलोग्राउंड, पीथमपुर सहित देवास के आसपास हैं। 90-95 छोटी फैक्ट्रियों के अलावा बाकी बड़ी कंपनियां जो पीथमपुर के एसइजेड में हैं, इनमें होने वाला पूरा उत्पादन निर्यात किया जाता है। प्रदेश में एक वर्ष में होने वाले करीब 10 हजार करोड़ रुपए के उत्पादन में 7 से 8 हजार करोड़ का उत्पादन इंदौर से होता है। दवा निर्माण में जरूरी करीब 2 हजार तरह के रसायनों का विभिन्न देशों से आयात किया जाता है। डेढ़ साल पहले तक करीब 100 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आता था, लेकिन अब जापान, कोरिया और इंडोनेशिया से भी आयात किया जा रहा है। दूसरी तरफ, घरेलू रॉ मटेरियल से दवा निर्माण कर निर्यात करने वाली कंपनियों की चांदी हो गई है। एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज मप्र (एआइएमपी) के अध्यक्ष आलोक दवे ने कहा कि इस तरह की कंपनियों का मुनाफा 10 फीसदी तक बढ़ गया है। केंद्र सरकार ने हाल में 19 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाया है, जिनमें फार्मा उद्योग से जुड़े कुछ कच्चे माल भी हैं। अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी का कहना है कि रुपए की गिरती कीमतों से परेशान इस इंडस्ट्री को आयात शुल्क में कमी कर कुछ राहत दी जा सकती है।
वहीं, मप्र स्माल स्कैल ड्रग मैनुफेक्चर एसोसिएशन के अध्यक्ष हिमांशु शाह ने बताया कि दो माह में पैरासिटामोल जैसी सस्ती टैबलेट में लगने वाले कच्चे माल की कीमत दोगुनी हो चुकी है। यही हाल रहे तो छोटी कंपनियोंं को उत्पादन बंद करना पड़ेगा। इस बारे में बेसिक ड्रग्स डीलर्स एसोसिएशन मप्र के महासचिव जेपी मूलचंदानी ने कहा कि आयतित कच्चे माल की कीमतें बढऩे से मजबूरी में उत्पादन कम करना पड़ रहा है। दवाओं की कीमतों में इजाफा करने का दबाव बढ़ रहा है।