नई दिल्ली। एलोपेथी में बीमारियों का उपचार तो है लेकिन बचाव नहीं है। लेकिन आयुर्वेद में उपचार के साथ बचाव भी है। इसलिए एलोपेथी के डॉक्टर भी आयुर्वेद की दवाओं को प्रोत्साहित करने लगे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एलोपेथी और आयुर्वेद के समावेश से बीमारियों का प्रभावी बचाव और निदान हो सकता है। आयुष मंत्रालय इन दोनों पैथियों में समावेश का पक्षधर रहा है, इसलिए मंत्रालय चाहता है कि आयुर्वेद की दवाओं को प्रोत्साहित किया जाए। मंत्रालय ने कई ऐसी दवाएं चिह्नित की हैं जो बाजार में बड़े पैमाने पर एलोपेथी के चिकित्सकों द्वारा लिखी जाती हैं। इनमें डायबिटीज की दवा भी है। यह दवा मरीज का शुगर लेवल कम करने के साथ-साथ डायबीटीज को बढऩे से भी रोकती है। इसमें कई ऐसे तत्व हैं जो ऐंटिआक्सिडेंट युक्त होते हैं। वे पोषण की दृष्टि से उपयोगी हैं। हाल ही में किडनी रोग विशेषज्ञों के एक सम्मेलन में एलोपेथी के चिकित्सकों ने आयुर्वेद की दवा नीरी केएफटी की जोरदार पैरवी की।

दरअसल यह दवा किडनी को खराबी से बचाती है। यदि किसी व्यक्ति की किडनी में खराबी आ रही हो तो नीरी केएफटी का सेवन उसे रोकता है। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के किडनी रोग विशेषज्ञ डा. मनीष मलिक के अनुसार एलोपेथी में किडनी की बीमारी को ठीक करने वाली दवाओं की कमी है। इसमें इलाज डायलिसिस और ट्रांसप्लांट ही है। वहीं आयुर्वेद में नीरी केएफटी किडनी की खराबी रोकने का बेहतरीन जरिया हो सकता है। जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. रामनिवास पराशर के अनुसार ऐसी दवाओं की लंबी लिस्ट है जो एलोपेथी के डॉक्टर अपने मरीजों को लिख रहे हैं । मानसिक अवसाद से बचाने के लिए आज भी अश्वगंधा का लोग इस्तेमाल करते हैं। इसी प्रकार पेट के रोगों के लिए ऐसी कई दवाएं हैं जो आयुर्वेद में निर्मित हैं लेकिन आज एलोपेथी का हिस्सा बन चुकी हैं। पराशर मानते हैं कि एलोपेथी और आयुर्वेद का समावेश बीमारियों से बचाकर मरीजों को लंबी उम्र दे सकता है।