रोहतक: प्रदेश भर के सरकारी डाक्टर 11 सितंबर को हड़ताल पर रहे। डाक्टरों की प्रमुख मांग है कि उन्हें केंद्र के समान भत्ते दिए जाएं और 40 प्रतिशत नॉन प्रेक्टिसिंग अलाउंस मिले। हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विसिज एसोसिएशन (एचसीएमएसए) के बैनर तले डाक्टरों ने सुबह 8 से 10 बजे तक सांकेतिक हड़ताल कर विरोध जताया।
हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विसिज एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. जसबीर सिंह परमार ने कहा कि डाक्टर्स अपनी मांगों को लेकर लंबे समय से आंदोलनरत हैं। कई बार सरकार के साथ वार्ता हो चुकी है लेकिन सरकारी रवैया ढूलमूल रहता है। एसोसिएशन की 20 अगस्त को हुई आमसभा की बैठक में हड़ताल का निर्णय लिया गया था। डाक्टरों की पदोन्नति में देरी और स्पेशलिस्ट डाक्टासें की भर्ती की मांग हड़ताल के दौरान खूब गूंजी। डाक्टरों का कहना है कि ये वे मांग हैं जो सरकार के सामने कई बार रख चुके हैं लेकिन हर बार अनसुना कर दिया जाता है।
डाक्टरों के तेवर देखते हुए सरकार ने एक दिन पहले ही हरियाणा आवश्यक सेवाएं रखरखाव अधिनियम, 1974 की धारा 4-ए की उपधारा-1 के अंतर्गत किसी भी हड़ताल को आगामी 6 माह के लिए रोक लगा दी थी। बावजूद इसके डॉक्टरों ने काम के बढ़ते बोझ के खिलाफ हड़ताल करने का निर्णय नहीं टाला। डॉक्टर परमार के मुताबिक, 1000 लोगोंं पर एक डॉक्टर का औसत होना चाहिए जबकि हरियाणा में करीब 10 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है। इससे डॉक्टरों की निजी जिदंगी भी प्रभावित हो रही है। वे मानसिक रूप से तनावग्रस्त हो रहे हैं। जब डॉक्टर ही रोगी हो जाएगा तो मरीजों का इलाज क्या करेगा।
उन्होंने कहा कि अपने अधिकारों के लिए लड़ाई का अधिकार इस देश के संविधान ने दिया है। डॉक्टरों ने शांतिपूर्वक ढंग से अपना विरोध दर्ज कराया है। सरकार ने दमनकारी नीतियों का प्रयोग कर डॉक्टरों की आवाज दबाने की कोशिश की तो आंदोलन तीव्र होगा। डॉक्टरों की इस दो घंटे की हड़ताल से ही अस्पतालों में चिकित्सा व्यवसथा गड़बड़ा गई। मरीज मारे-मारे फिरते नजर आए। ओपीडियों में एकाएक भीड़ बढ़ गई। जिससे स्वासथ्य विभाग के हाथ-पांव फूल गए। डॉक्टर और सरकार के इस टकराव को लेकर मरीजों में बेहद गुस्सा देखा गया।