नई दिल्ली। दुनियाभर के मेडिकल विशेषज्ञ और वैज्ञानिक कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं। कुछ देश वैक्सीन बनाने का दावा भी कर चुके हैं लेकिन अभी उनका ट्रायल किया जाना बाकी है। वहीं, ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी इस मामले में सबसे तेज है। ऑक्सफोर्ड के जेनर इंस्टीट्यूट ने पिछले हफ्ते ही इसका ह्यूमन ट्रायल करना शुरू कर दिया और ये इंस्टीट्यूट मई के अंत तक 6 हजार से अधिक लोगों पर ट्रायल करके देखना चाहता है। जेनर इंस्टिट्यूट आगे भी लगातार ट्रायल करती रहे इसके लिए ब्रिटिश सरकार मदद करते हुए, 20 करोड़ पाउंड यानी 180 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। इस बीच अच्छी बात ये रही कि जेनर द्वारा किए गये रीसस मकाक बंदर पर किए गये वैक्सीन ट्रायल के रिजल्ट भी आ गये हैं। इस रिजल्ट के अनुसार, वैक्सीन ‘ChAdOx1 nCoV-19’ बंदरों को कोरोना से बचाने में सफल रही है।
रिपोर्ट की माने तो ब्रिटेन वैक्सीन बनाने की रेस में सबसे आगे है। इसी रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि इंस्टीट्यूट की बनाई वैक्सीन रीसस मकाक बंदरों पर सफल रही है। इसमें 6 बंदरों पर ट्रायल किया गया था। वैक्सीन के ट्रायल के बाद बंदरों को कोरोना के हैवी लोड वायरस के संपर्क में लाया गया था। लेकिन 4 हफ्तों बाद भी वैक्सीन लेने वाले बंदर बिल्कुल स्वस्थ थे। वहीं, ट्रायल में शामिल किए गये 6 बंदर ट्रायल के 28 दिन बाद भी स्वस्थ हैं। इस ट्रायल में शामिल किए गये रीसस मकाक बंदर इंसानों के सबसे करीबी माने जाते हैं। वहीँ इस ट्रायल से यह नहीं सिद्ध हो जाता है कि ये वैक्सीन इंसानों पर भी ऐसे ही काम करेगी। इसके अभी 50-50 के चांस हैं। लेकिन इससे यह मदद जरुर मिली है कि इससे अगले लेवल तक जाया जा सकता है इसकी सफलता मिल चुकी है।
रिपोर्ट की मानें तो इस वैक्सीन की कुछ लाख डोज सितंबर तक मिल सकती है। लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है कि इसका ह्यूमन ट्रायल सफल हो सके। वैसे भारत में भी वैक्सीन बनाने में बड़ी सफलता मिली है। भारत का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर वैक्सीन बनाने में जुटा है। इससे पहले भी ये इंस्टीट्यूट मलेरिया वैक्सीन प्रोजेक्ट पर ऑक्सफोर्ड के साथ काम कर चुका है। उम्मीद की जा रही है कि कोरोना वैक्सीन भारत में सितंबर-अक्टूबर तक आ जाएगी। अभी 10 डोज बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इंडियन सीरम इंस्टीट्यूट की तरफ से कहा गया है कि जल्द ही ह्यूमन ट्रायल शुरू होगा और शुरुआती 6 माह में 60 लाख डोज हर माह के लिए दी जायेंगी और फिर आगे हर महीने 1 करोड़ डोज बनाने की तैयारी की जाएगी।
साभार – नई दुनिया