देहरादून। राज्य में ड्रग विभाग के ‘अच्छे दिन’ आने वाले हैं। शासन ने विभाग के सुदृढ़ीकरण के लिए प्रस्ताव मांगा है। गौरतलब है कि नकली और निम्न गुणवत्ता वाली दवाइयों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी औषधि विभाग की है। लेकिन, विभाग खुद बीमार पड़ा है। पर्याप्त ड्रग इंस्पेक्टर न होने से विभाग नियमित कामकाज को भी ठीक ढंग से अंजाम नहीं दे पा रहा। कहने को तो 200 मेडिकल स्टोर और 50 फार्मा कंपनियों पर एक ड्रग इंस्पेक्टर का मानक है। सूबे में स्थिति यह है कि जिलों की संख्या के बराबर भी ड्रग इंस्पेक्टर नहीं हैं। राज्य में करीब 15 हजार थोक व रिटेल दवा विक्रेता हैं। एक-एक ड्रग इंस्पेक्टर के पास दो से तीन जिलों का जिम्मा है।
ड्रग इंस्पेक्टर के 14 पदों में से केवल चार पर ही कार्यरत हैं। ड्रग इंस्पेक्टर के पास दुकानों के निरीक्षण के साथ अन्य कई काम भी होते हैं। अमूमन लाइसेंस, फार्मा कंपनियों में निरीक्षण, सैंपलिंग समेत न्यायालय संबंधी मामले निपटाना आदि। इस समस्या के मद्देनजर अब सरकार ने विभाग को संजीवनी देने की कवायद शुरू कर दी है। यह मुहिम परवान चढ़ी तो ड्रग विभाग में स्टाफ की कमी जल्द दूर हो जाएगा। इससे दवा की टेस्टिंग के लिए भी लंबा इंतजार खत्म होगा। वर्तमान प्रयोगशाला को अपग्रेड करने की भी तैयारी चल रही है। औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी ने बताया कि प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
इसे जल्द शासन को उपलब्ध कराया जाएगा। उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को बड़ी सौगात मिलने वाली है। प्रदेश में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) का क्षेत्रीय कार्यालय खोला जाएगा। बता दें कि मसूरी में आयोजित इंवेस्टर्स मीट में मुख्यमंत्री ने दवा निर्यात बढ़ाने व अत्याधुनिक इकाइयों, प्रयोगशालाओं व अन्य सुविधाओं की स्थापना पर जोर दिया है। इसी बीच, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने प्रदेश में क्षेत्रीय कार्यालय खोलने की इच्छा जताई है। क्षेत्रीय कार्यालय खुलने से फार्मा उद्योग को काफी फायदा होगा। इससे दून और दिल्ली के बीच की भागदौड़ पर भी रोक लगेगी।