नई दिल्ली। पड़ोसी देश चीन में दवा कंपनियां एक के बाद एक बंद होती जा रही हैं। इसके चलते भारतीय फार्मा सेक्टर पर काफी प्रभाव पडऩे से इनकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, भारत दवा निर्माण के लिए 85 फीसदी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रीडिएंट (एपीआई) का आयात चीन से ही करता है और इनकी कीमतें 120 फीसदी तक बढ़ गई हैं। इससे भारत में दवाओं की सप्लाई पर असर पड़ेगा और दवाइयां महंगी हो सकती हैं।
गौरतलब है कि जून 2017 की तुलना में एंटी डायबीटीक, कार्डोवस्कुलर, सेंट्रल नर्वस सिस्टम, विटामिंस और एंटीबायॉटिक्स सहित लगभग सभी तरह की दवाइयों के लिए कच्चा माल महंगा हो गया है। सबसे अधिक वृद्धि कैंसर से संबंधित दवाओं में हुई है। कैंसर की दवाओं के लिए अहम एपीआई, 5-फ्लूरोसाइटोसिन और एचएमडीएस में क्रमश: 60 और 484 फीसदी की वृद्धि हुई है। पिछले एक साल में चीन में करीब 1.5 लाख फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। इसमें से चौथाई का असर फ़ार्मासूटिकल पर होगा। एक अनुमान के मुताबिक, 145 एपीआई निर्माताओं ने फैक्ट्रियों पर ताला डाल दिया है। आशंका है कि अधिकतर छोटे सप्लायर्स दोबारा कारोबार शुरू नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उनके लिए सरकार द्वारा तय पर्यावरण संबंधी मानकों को पूरा करना संभव नहीं है।
पिछले कुछ दशकों से भारतीय फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री एपीआई और दूसरे अहम सामग्रियों के लिए चीन पर निर्भर है। कई बुनियादी रसायनों पर इसका प्रभाव हो सकता है। सप्लाई चेन पर इसका असर दिखना बाकी है। कई स्टार्टिंग मेटीरियल पर जल्द इसका असर होगा। एपीआई मैन्युफैक्चरर्स के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर सौरभ गुरनुरकर ने कहा कि एपीआई की कीमतों में वृद्धि केएसएम (की स्टार्टिंग मेटीरियल) के दामों में उछाल की वजह से हुई है, जो एपीआई के लिए अहम सामग्री है। यह चीन से बाहर सप्लाई अनिश्चितताओं की वजह से हो रहा है। यहां तक कि भारत (केएसएम का अहम स्थान) में भी प्रदूषण चिंताओं की वजह से कई यूनिट्स पर असर पड़ा है। यह सप्लाई और प्रॉडक्ट की कीमतों पर असर डाल रहा है। क्रूड ऑइल प्राइस ने भी बाजार पर असर डाला है, जोकि एपीआई मैन्युफैक्चरर्स के लिए कीमत निर्धारण का अहम हिस्सा है। पीडब्ल्यूसी इंडिया लीडर (फार्मास्यूटिकल एंड लाइफ साइंसेज) संजय शेट्टी का कहना है कि यदि डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट जारी रहती है तो इंडस्ट्री का दर्द बढऩे वाला है।