जयपुर। मुफ्त दवा योजना में अपनी दवाएं शामिल कराने के लिए राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (आरएमएससीएल) से कंपनियां हर सांठगांठ करने में लगी हैं। कंपनियों के दबाव में राज्य सरकार के अफसर टेंडर की उन शर्तों में बदलाव कर रहे है, जो 10 साल में नहीं बदली गईं। इन कंपनियों को फायदा देने के लिए उन कमेटियों की बात को भी खारिज कर दिया गया, जो कि आरएमएससीएल में दवाओं के लिए राय रखती है। रोचक यह है कि विभिन्न दवाओं के लिए किए जा रहे बदलाव की ये सभी कंपनियां विदेशी हैं, जबकि इंडियन कंपनियां न केवल शर्तें पूरी कर रही हैं, बल्कि दवाओं की बेहतरीन उपलब्धता भी करा रही हैं। उधर, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि कमेटियों की रिपोर्ट के विरुद्ध कुछ हुआ है तो इस पर कार्रवाई जरूर करेंगे। यही नहीं, हेपेटाइटिस-बी के लिए आरएमएससीएल में पहले 200 आईयू (इंटरनेशनल यूनिट) की दवा दी जाती रही है। 200 आईयू के लिए ही टेंडर भी कर दिए, लेकिन जिस दिन (7 जनवरी) टेंडर सबमिट होने थे, उसी दिन इस प्रोडक्ट को टेंडर लिस्ट से ही बाहर कर दिया। साथ ही टेंडर में 100 आईयू के इंजेक्शन सबमिट का उल्लेख कर दिया। हेपेटाइटिस के लिए जम्मू कश्मीर मेडिकल कॉरपोरेशन, ओडिशा मेडिकल कॉरपोरेशन, दिल्ली, डायरेक्टर हेल्थ सर्विस और ईएसआई हॉस्पिटल्स में 200 आईयू के ही इंजेक्शन खरीदे जाते हैं। हेपेटाइटिस-बी के लिए भी बनाई गई कमेटी में डॉ. कल्पना व्यास, डॉ. रफीक, डॉ. अशोक गुप्ता, डॉ. रमन शर्मा ने भी 200 आईयू के लिए कहा था। निशुल्क दवा योजना में हीमोफीलिया का फेक्टर-9 (री-कॉम्बिनेट) और हीमोफीलिया का फेक्टर-8 (री-कॉम्बिनेट), 250 आईयू और 1000 आईयू की दवाएं नई जोड़ी गई हैं। गुणवत्ता बनी रहे, इसके लिए विदेशी कंपनियों के लिए शर्त रखी गई थी। आरएमएससीएल के नियमों में ही था कि किसी भी बाहर की (विदेशी) कंपनी को टेंडर देने से पहले तीन साल तक इंडियन मार्केट में सप्लाई की जरूरत है। ऐसा इसलिए ताकि दवा में गड़बड़ी सामने आए तो उस कंपनी से बात की जा सके और बहुत अधिक डिमांड वाली दवा बिक्री से रोकी जा सके, लेकिन अब विदेशी कंपनियों को फायदा देने के लिए शर्तों में बदलाव किया गया है। इसमें लिखा गया है कि कोई भी विदेशी कंपनी सीधे आकर टेंडर प्रक्रिया में भाग ले सकती हैं। टू-जी नियमों की अवहेलना करने वाली एक कंपनी ने दवा अमानक होने के बावजूद टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया। कंपनी ने लिख कर दिया कि मेरा कोई कोटेड प्रोडक्ट दो साल से अमानक नहीं है, जबकि खुद आरएमएससीएल ने इस कंपनी के प्रोडक्ट को अमानक घोषित किया था। ऐसी ऐसी कंपनी दो साल तक टेंडर प्रक्रिया में भाग ही नहीं ले सकती। विभाग के कुछ अधिकारी नियमों को दो साल की बजाय एक साल करने में लगे हैं। विभाग स्नेक बाइट इंजेक्शन के टेंडर नहीं कर रहा। 6 महीने से इंजेक्शन योजना में नहीं मिल रहे हैं। निशुल्क दवा योजना में एल्बुमिन के लिए कुछ कंपनियों (20 करोड़ से कम टर्नओवर वाली) ने अप्लाई करना चाहा। इसके कुछ ही दिन में तय किया गया कि इस दवा के लिए किसी कंपनी का टर्नओवर 20 करोड़ रुपए से घटाकर केवल 5 करोड़ रुपए कर दिया जाता है। 2011 के बाद पहली बार ऐसा किया गया है। मार्केट स्टैंडिंग में भी छूट दी गई है।