अलवर। जिला कलेक्टर के आदेश से सहकारी उपभोक्ता भंडार की दुकानों पर अब पेंशनर्स को ब्रांडेड दवा देने पर रोक लगा दी गई है। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर्स पेंशनर डायरी पर अब जेनरिक दवा के सॉल्ट ही लिखेंगे। इस संबंध में कलेक्टर ने मौखिक आदेश उपभोक्ता भंडार के महाप्रबंधक को दिए हैं। दरअसल जिलाध्यक्ष- मधुसूदन शर्मा ने बताया कि जटिल और गंभीर बीमारियों में पेंशनर्स को ब्रांडेड दवा जरूरी हैं, जो वह कई साल से लेता आ रहा है। जेनरिक में गोलियाें की संख्या बढ़ने के साथ ज्यादातर दुकानों पर उपलब्ध भी नहीं हैं। अगर सरकार को सस्ती दवाएं ही पेंशनर्स को खिलानी हैं और दोनों ही समान हैं तो जनहित में ब्रांडेड पर पूरी तरह रोक लगा दें।

जिला कलेक्टर के मौखिक आदेश ने पेंशनर्स का संकट बढ़ा दिया है।साथ ही जिला प्रवक्ता -पुष्कर वर्मा ने बताया कि कैंसर, हार्ट, किडनी के गंभीर मरीजों को ब्रांडेड दवाओं की जरूरत है लेकिन कलेक्टर ने मौखिक आदेश से पेंशनर्स की परेशानी बढ़ा दी है। अब ब्रांडेड दवाओं के लिए पेंशनर्स को भटकना पड़ेगा। हम सरकार से दवाओं की भीख नहीं मांग रहे हैं। ये हमारा हक है, क्योंकि हमने पूरी नौकरी में दवाओं के लिए वेतन से पैसा कटवाया है। फिर पेंशनर की जिंदगी से प्रशासन खिलवाड़ क्यों कर रहा है? अगर जेनरिक सॉल्ट में भी गंभीर बीमारियों की दवा नहीं मिली तो पेंशनर्स दुकान से एनओसी लेकर बाजार से ब्रांडेड दवा खरीद सकेंगे और दवा के बिल का उपभोक्ता भंडार के माध्यम से ट्रेजरी से भुगतान ले सकेंगे।

पेंशनर सरकार की इस उलझनभरी जटिल प्रक्रिया से परेशान हैं, क्योंकि उन्हें एनओसी लेने के बाद बाजार से दवा लेनी होगी। फिर बिल बनाकर डॉक्टर के हस्ताक्षर कराने के लिए उपभोक्ता भंडार के कार्यालय में जमा कराना होगा। इसके बाद ट्रेजरी से बिल पास होने का इंतजार करना होगा। जिला प्रशासन ने पेंशनर्स को दवा उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को सरल कराने के बजाय जटिल कर दिया है। गंभीर व जटिल बीमारियों वाले पेंशनरों की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि गंभीर बीमारियों में ब्रांडेड दवा में कॉम्बीनेशन सॉल्ट की एक टेबलेट की जेनरिक में 2 से 3 गोलियां बढ़ जाएंगी। अगर पेंशनर एक समय में रोजाना 5 गोलियां ले रहा है, तो उसे 15 गोलियां तक लेनी होंगी, क्योंकि जेनरिक में ज्यादातर अलग-अलग साल्ट की अलग-अलग टेबलेट हैं।

ब्लड प्रेशर की टेलमीसारटन टेबलेट 80 एमजी में उपलब्ध है, जेनरिक में ये दवा 40 एमजी की ही बाजार में मिलती है। मरीज को 1 की जगह 2 टेबलेट लेनी होंगी। ब्रांडेड में हार्ट की इकोइस्प्रिन, क्लोपीडोगरेल व एस्प्रिन के कॉम्बीनेशन सॉल्ट की ब्रांडेड में एक टेबलेट मिलती है, जेनरिक में या तो अलग-अलग साल्ट हैं या क्लोपीडोगरेल व एस्प्रिन का ही कॉम्बीनेशन है।डायबिटीज की टेलमीसारटन, एमलोडिपिन व हाइड्रोक्लोराइड के कॉम्बीनेशन सॉल्ट ब्रांडेड दवा में सिर्फ एक टेबलेट में हैं, जेनरिक में इनकी 3 अलग-अलग सॉल्ट की गोलियां आएंगी। डायबिटीज की सिटाग्लिप्टिन व वीडाग्लिप्टिन-1000 एमजी सॉल्ट मेटफोरमिन के साथ ब्रांडेड में एक टेबलेट में उपलब्ध है, जेनरिक में सिर्फ मेटफोरमिन सॉल्ट ही है।

जोड़ों के दर्द की डाइसरिन, ग्लूकोसमाइन व सल्फानाइलमिथेन 3 सॉल्ट एक ब्रांडेड टेबलेट में हैं, जेनरिक में 3 अलग-अलग सॉल्ट की टेबलेट लेनी होगी। अगर वे एनओसी पर दवा बाजार से खरीदते हैं, तो पैसा सरकार को ही देना है। ऐसे में अगर ब्रांडेड दवा भी पेंशनर्स उपभोक्ता भंडार की दुकानों से लेते रहे तो उन्हें बुढ़ापे में भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी, लेकिन उपभोक्ता भंडार की दुकानों पर सीधे ब्रांडेड दवा लेने पर रोक ने राेगी वृद्ध पेंशनर्स की परेशानी बढ़ा दी है। उपभोक्ता भंडार की 72 जेनरिक दवाओं की सूची में 42 सिंगल साल्ट की हैं। अब भंडार की दुकानों से सिर्फ जेनरिक दवाएं ही दी जा रही हैं।