जनेरिक दवा और ब्रांडेड दवाओं पर बहस तेज होने के बीच केवल सात प्रतिशत लोग ही चाहते हैं कि चिकित्सक उन्हें जनेरिक दवाएं (गैर-ब्रांडेड या सामान्य दवा) लेने की सलाह दें। यह बात एक सर्वेक्षण में सामने आई है। राष्ट्रीय दवा आयोग (एनएमसी) ने कुछ दिन पहले दिशानिर्देश जारी कर डॉक्टरों को केवल जनेरिक दवाएं लिखने की हिदायत दी थी।

सामुदायिक स्तर पर सामाजिक कार्यों से जुड़े मीडिया मंच लोकलसर्कल्स के सर्वेक्षण के अनुसार केवल सात प्रतिशत लोग ही एनएमसी के इस दिशानिर्देश का समर्थन करते हैं। मगर 85 प्रतिशत लोगों का मानना है कि एनएमसी का यह निर्देश वाजिब है कि चिकित्सकों को दवा कंपनियों एवं अन्य प्रतिष्ठानों से उपहार, अनुदान या कमीशन आदि नहीं लेना चाहिए।

सर्वे में शामिल लगभग 60 प्रतिशत लोगों का मानना है कि चिकित्सकों को ब्रांडेड दवा एवं जेनेरिक साल्ट दोनों के नामों का उल्लेख करना चाहिए। इन लोगों के अनुसार इससे लोगों के पास दवा खरीदते समय दवाओं की उपलब्धता एवं उनके मूल्य के आधार पर समझदारी के साथ निर्णय लेने में आसानी होगी।

ये भी पढ़ें- उज्बेकिस्तान में कफ सिरप से मौतों के आरोप पर नया खुलासा

सर्वेक्षण में ऐसे 72 प्रतिशत लोग हैं जिनका मानना है कि उनके चिकित्सक विभिन्न स्रोतों- जांचघरों, नर्सिंग होम, अस्पतालों, दवा कंपनियों एवं केमिस्ट- से कमीशन लेते हैं। एनएमसी ने 2 अगस्त को दिशानिर्देश जारी कर चिकित्सकों के लिए मरीजों को ब्रांडेड दवाओं के स्थान पर जनेरिक दवाएं लेने की सलाह देना अनिवार्य कर दिया था।

निर्देश में कहा गया है कि अगर चिकित्सक इसका पालन नहीं करते हैं तो उन पर आर्थिक दंड लगाया जा सकता है और बार-बार निर्देश का उल्लंघन करने पर उनका मेडिकल लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है। इस सर्वेक्षण में देश के 326 जिलों के 43,000 लोग शामिल हुए थे।

सर्वेक्षण में भाग लेने वाले लोगों ने कहा कि निर्देश का उल्लंघन करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ तेजी से जांच एवं कार्रवाई और शिकायतकर्ताओं के साथ पूरी पारदर्शिता के साथ संवाद से पूरी प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बढ़ेगा।