मेरठ। कोरोना की दूसरी लहर में मेरठ में एक महीना सात दिन तक सबकुछ बंद रहा। सारे काम-धंधे ठप रहे। बस एक दवा कारोबार ऐसा रहा जो दिन दोगुना, रात चौगुना होता गया। एक आकलन के अनुसार, कोरोना काल में मेरठ में करीब 1500 करोड़ रुपये की दवाएं बिक गईं। दरअसल मेरठ के अस्पतालों में कोरोना के पीक टाइम में करीब तीन हजार मरीज भर्ती रहे। जबकि इतने ही मरीज होम आइसोलेट थे। अस्पताल में भर्ती एक मरीज की प्रतिदिन दवाई औसतन 10-15 हजार रुपये की बैठती थी। इसमें भी कुछ इंजेक्शन और महंगे थे। सामान्य कोविड किट भी पांच-छह हजार रुपये की बैठ रही थी।

जिला मेरठ कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री डॉ. रजनीश कौशल के अनुसार, कोरोना काल में दवा कारोबार चार से पांच गुना तक ज्यादा हुआ। 20 मई के बाद कारोबार में गिरावट आनी शुरू हो गई। अब स्थिति यह है कि सामान्य दिनों में जो बिक्री होती थी, उससे भी करीब 20-25 फीसदी बिक्री गिर गई है। उसकी वजह यह है कि कोरोना खत्म हो गया। ब्लडप्रेशर, शुगर वाले जो मरीज रूटीन दवाइयां लेते थे, वे बड़ी संख्या में कोरोना के चलते नहीं रहे। इसके अलावा कोरोना काल में लोगों ने तमाम दवाएं अपने घरों में स्टॉक कर लीं। इसलिए अब सामान्य दिनों से भी बिक्री कम हो गई है।

दरअसल मेरठ में दवा बिक्री की करीब पांच हजार दुकानें हैं। इसमें खैरनगर में ही करीब 600 दवा विक्रेता हैं। खैरनगर को वेस्ट यूपी की प्रमुख दवा मार्केट माना जाता है। कई शहरों के रिटेल विक्रेता यहां से दवा खरीदकर ले जाते हैं। सामान्य दिनों में खैरनगर मार्केट का दवा कारोबार करीब पांच से छह करोड़ रुपये प्रतिदिन होता था। कोरोना में यही कारोबार 20 करोड़ रुपये प्रतिदिन के आसपास पहुंच गया। जो दवाएं यहां से बिकी, वे तकरीबन 15 से 20 फीसदी मुनाफे पर रिटेल दवा विक्रेताओं ने अपनी दुकानों पर ले जाकर बेचीं। कोरोना के करीब दो महीने के दौरान करीब-करीब पन्द्रह सौ करोड़ रुपये का दवा कारोबार हुआ। इस दौरान सबसे ज्यादा दवाएं कोरोना इलाज से जुड़ी हुई बिकीं।