मुंबई। दवा कंपनी सिप्ला कोविड 19  के उपचार के विभिन्न तरीकों पर काम कर रही है जिसमें  रेमडेसिविर, एचआईवी-रोधी दवा  के साथ-साथ रोश की जैविक दवा टोसीलुजुमैब भी शामिल हैं जिसकी पूरी बिक्री भारत में की जाती है। इसके अलावा कंपनी अपनी घरेलू बाजार की बिक्री रणनीति फिर से तैयार कर रही है तथा अपनी पूंजी और परिचालन व्यय योजनाओं की जांच कर रही है। पिछले सप्ताह सिप्ला उन तीन भारतीय कंपनियों में से एक थी जिन्होंने अमेरिका स्थित गिलियड साइंसेज के साथ नॉन-एक्सक्युसिव लाइसेंस अनुबंध किया था। सिप्ला ने इस परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया है और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया जारी है। कंपनी ने दवा की शुरुआत या मूल्य निर्धारण के बारे में नहीं बताया है।
सिप्ला के वैश्विक मुख्य वित्तीय अधिकारी केदार उपाध्याय के अनुसार सिप्ला भारत में रोशे की सूजन-रोधी दवा एक्टेमरा की एकमात्र एजेंट है जिसका उपयोग फेफड़ों की गंभीर समस्याओं वाले मरीजों में किया जा सकता है। यह रेमडेसिविर, फैविपिरावीर और लोपिनावीर/रिटोनावीर के अलावा कोविड-19 के उपचार के लिए खोजे जाने वाले संभावित विकल्पों में से एक है। फिलहाल इस दवा का दुनिया भर में क्लीनिकल परीक्षण चल रहा है। जहां तक एक्टेमरा की बात है, तो उद्योग के सूत्रों का कहना है कि जिन मरीजों पर इसका प्रयोग किया गया है, उनमें अब तक इसने सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं। मुंबई के कुछ सार्वजनिक अस्पताल कोविड-19 से गंभीर रूप से पीडि़त मरीजों को यह दवा दे रहे हैं। उद्योग के एक सूत्र ने कहा कि शुरुआती  परिणाम बताते हैं कि जब कोई व्यक्ति दो से तीन दिनों तक इस दवा का उपयोग करता है तो वायरल के चिह्न समाप्त होने लगते हैं और वायरल का दबाव काफी कम हो जाता है।कंपनियां मरीजों की संख्या के अनुसार कोविड-19 के जोन – रेड, ग्रीन और ऑरेंज के अनुकूल रणनीति में परिवर्तन कर रही हैं। ये जोन गतिशील भी हैं और अगर मरीजों की संख्या बढ़ती है, तो ग्रीन जोन ऑरेंज जोन बन सकता है अथवा इसके उलट भी हो सकता है। उपाध्याय ने कहा कि पहले की समीक्षा (बिक्री या प्रदर्शन की) उपचार या क्षेत्र के आधार पर (जैसे उत्तर क्षेत्र या दक्षिण क्षेत्र आदि) हुआ करती थी। अब इसे किसी क्षेत्र के नजरिये से अधिक देखा जा रहा है। हमारी समीक्षा प्रणाली बदल गई है।