नई दिल्ली। मरीज के दिल, दिमाग और फेफड़ों में संक्रमण से रक्त का थक्का बन सकता है। चीन के वुहान में मरने वाले लोगों के पोस्टमार्टम से यह खुलासा होने से भारतीय अस्पताल भी सतर्क हो चुके हैं। मरीजों को रक्त पतला करने की दवा दी जा रही है, ताकि थक्का जमने से स्ट्रोक या हार्ट अटैक से बचाया जा सके। दिल्ली एम्स ने प्रोटोकॉल बदलते हुए रक्त पतला करने की दवाएं देने के निर्देश दिए हैं। मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद व चेन्नई जैसे महानगरों के अस्पतालों में भी यह तरीका अपनाया जा रहा है। प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेंट’ में प्रकाशित चीनी वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार, रक्त के थक्के (क्लॉट) दिखाई दिए। मौत के बाद मरीजों के फेफड़े, दिमाग और दिल में भी थक्के मिले। इटली में मृत रोगियों में भी रक्त के थक्के दिखाई दिए। 183 मरीजों पर हुए चीन के अध्ययन में सलाह दी गई है कि इन मरीजों को ब्लड क्लॉट रोकने वाली दवाएं दी जा सकती हैं। इटली के वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि की है। न्यूयॉर्क से भी खबर थी कि संक्रमित टीवी अभिनेता निक कॉर्डेरो के दाएं पैर को खून के थक्के जमने के कारण काटना पड़ा। इन अध्ययनों के आधार पर चीन, अमेरिका, यूरोप, इटली सहित तमाम देशों में कोविड चिकित्सीय प्रोटोकॉल में बदलाव किए गए हैं।
एम्स के एक वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ के मुताबिक, एम्स के ट्रामा और झज्जर स्थित राष्ट्रीय कैंसर संस्थान में मरीजों का उपचार चल रहा है। गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के डॉ. यतीन मेहता का कहना है कि उनके यहां मरीजों को प्रोटोकॉल के तहत ऐसी दवाएं दे रहे हैं। मुंबई स्थित सेवन हिल्स अस्पताल के डॉ. महेश का कहना है कि कुछ मरीजों में खून के थक्के जमने की परेशानी देखने को मिली है। कोविड-19 पर अभी तक के अध्ययन के आधार पर मरीजों को दवाएं देना शुरू कर दिया है।
आईसीएमआर की ओर से मरीजों को खून का थक्का नहीं जमने की दवा देने की अनुमति नहीं दी गई है। इनके चिकित्सा प्रोटोकॉल में बदलाव भी नहीं किए गए हैं। आईसीएमआर मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि दूसरे देशों से भारत अलग है। यहां मरीजों की स्थिति, संक्रमण का स्तर, उसका स्वरूप इत्यादि भिन्न हैं। हालांकि एक अध्ययन इस पर चल रहा है, जिसके परिणाम आने के बाद आगे की कार्रवाई पूरी होगी।