छपरा। कोरोना की दूसरी लहर आयने के बाद देश में तबाही का मंजर देखने को मिला था। हर तरफ अस्पताल में बेड्स की कमी के साथ -साथ दवा और ऑक्सीजन की भारी कमी देखने को मिली थी। हालांकि स्थिति सामान्य होने के बाद से अब दवा व ऑक्सीजन की डिमांड भी सामान्य हो गई है। जिले में एक ऐसा वक्त आया था कि कोरोना संक्रमण की रफ्तार इतनी तेज हो गई थी कि ऑक्सीजन व ऑक्सीमीटर की डिमांड बढ़ गयी थी। ऑक्सीमीटर व ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए अधिक पैसे खर्च करने के लिए भी लोग तैयार रहते थे लेकिन जैसे-जैसे जिले में कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी पड़ने लगी है, वैसे- वैसे आवश्यक दवाएं, ऑक्सीजन सिलेंडर की डिमांड भी कम होने लगी है। आज सामान्य रूप से हर चीज उपलब्ध है और जो बाजार का रेट निर्धारित है उस रेट पर आसानी से लोगों को मिल जा रहा है। कभी दवा मंडी में विटामिन सी का लिम्सी और एथ्रूल जैसे एंटीबायोटिक आउट ऑफ स्टॉक दवा मंडी से हो जाते थे।
आज यही दवा मार्केट में आसानी से उपलब्ध है और इसकी डिमांड न के बराबर हो गई है। पहले ऑक्सीमीटर को 2000 तक देकर लोगों को खरीदना पड़ता था। आज 400 से 500 में बाजार में ऑक्सीमीटर उपलब्ध है। 10 लीटर ऑक्सीजन सिलेंडर का 500 लगता था आज 300 रुपये में आसानी से मिल जा रहा है। आपको बता दें कि कोरोनावायरस की रफ्तार इस कदर थी कि छपरा सदर अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में 100 से अधिक गंभीर मरीज भर्ती थे। आज यह आंकड़ा दो और तीन पर आ गया है। वैसे ही कोरोनावायरस मरीजों का जिले में कभी 300 से अधिक पॉजिटिव मरीज मिलते थे आज 2 से लेकर 5 के बीच है।
जिले में ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी को रोकने को लेकर डीएम डॉ नीलेश रामचंद्र देवरे ने जीवन रक्षक दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी को रोकने को लेकर औषधि विभाग की एक टीम को भी गठित किया था जिसमें ड्रग इंस्पेक्टर व अन्य पदाधिकारी और मजिस्ट्रेट को रखा गया था । इनके द्वारा शहरी क्षेत्र और देहाती क्षेत्रों की दवा दुकानों के अलावा ऑथराइज जितने भी ऑक्सीजन गैस सिलेंडर के विक्रेता थे, उनकी दुकानों पर भी छापेमारी की गई लेकिन कालाबाजारी की बात कही सामने नहीं आई।