महामारी से बचाव के लिए पूरी दुनिया की निगाहें इस वक्त सिर्फ वैक्सीन पर टिकी हैं। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कोविड-19 के खिलाफ यह कितनी कारगर रहेगी। वैज्ञानिक के अनुसार वैक्सीन का प्रभाव वायरस की आनुवांशिक संरचना में बदलाव (म्यूटेशन) पर ज्यादा निर्भर करेगा।
इसके हिसाब से ही वैक्सीन में भी बदलाव की जरूरत पड़ेगी। अगर वायरस ज्यादा म्यूटेट नहीं करता है तो अधिकांश लोगों पर एक ही वैक्सीन प्रभावी रहेगी। हालांकि, यह वायरस फिलहाल एक ही स्ट्रेन में मौजूद है। लोगों में इसके खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित होने पर वायरस के जीनोम में बदलाव दिखने शुरू हो जाएंगे।
दूसरे वायरसों की तरह ही कोविड-19 एक से दूसरे इंसान में जाते वक्त म्यूटेट कर रहा है। लेकिन अधिकांश म्यूटेशन के दौरान वायरस के संक्रमण की क्रियाविधि पहले जैसी ही रहती है। सामान्यतया कोई भी वायरस एक कोशिका में प्रवेश कर उस पर काबू पाता है। फिर अपना कुनबा बढ़ाने (रेप्लिकेशन) में जुट जाता है। कुछ मामलों में इस रेप्लिकेशन में म्यूटेशन दिखाई दे सकता है। वैक्सीन के जरिए दी जाने वाली एंटीबॉडी सीमित म्यूटेशन से निपट लेती हैं तो उसे लगातार अपडेट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैसे खसरे के वायरस में लगातार म्यूटेशन देखा गया लेकिन 1950 से लेकर अब तक वही वैक्सीन इस पर प्रभावी रही है।
अगर वायरस इस तरह म्यूटेशन कर ले कि एंटीबॉडी का उस पर असर ही न हो, तो फिर सभी के लिए एक ही वैक्सीन काम नहीं करेगी। एंटीबॉडी वायरस एंटीजन को थामकर अपना प्रभाव दिखाती है लेकिन अगर वायरस म्यूटेशन कर एंटीजन के आकार में लगातार तब्दीली करता रहे तो एंटीबॉडी का असर कम हो जाता है। ऐसा फ्लू के वायरसों में अकसर देखने को मिलता है, जब एक ही वायरस कई आनुवांशिक रूपांतर (स्ट्रेन) के साथ सामने आने लगता है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि ज्यादा म्यूटेशन पर एक टीके से काम नहीं चलेगा, इसके लिए नई-नई वैक्सीन बनाकर तैयार रहना होगा। हरेक स्ट्रेन के लिए अलग-अलग वैक्सीन की जरूरत पड़ती है। इन नए स्ट्रेन को ध्यान में रखते हुए ही वैज्ञानिक वैक्सीन बनाते हैं। इसके बावजूद सालभर सक्रिय रहने वाले वायरस के भिन्न-भिन्न स्ट्रेन पर वैक्सीन आंशिक प्रभाव ही दिखा पाती है। अगर ऐसा कोरोना के मामले में भी होता है तो शोधकर्ताओं को नई-नई वैक्सीन बनाने के लिए तैयार रहना होगा। वैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल इस वायरस के खिलाफ लोगों में व्यापक प्रतिरक्षा मौजूद नहीं है। लिहाजा, वायरस को टिके रहने के लिए ज्यादा बदलावों की जरूरत नहीं है। अगर म्यूटेशन से एंटीजन का आकार बदलता भी है तो वह ज्यादा स्थायी नहीं होगा। लेकिन जिस दिन लोगों में कोरोना के प्रभावी स्ट्रेन के खिलाफ प्रतिरक्षा आ जाएगी, तब इसके नए स्ट्रेन बनने की आशंकाएं बढ़ जाएंगी।

वैज्ञानिक के मुताबिक, वायरस म्यूटेट कर रहा है। जॉन हॉपकिंस अप्लायड फिजिक्स लेबोरेट्री में मॉलिक्युलर बायोलॉजिस्ट डॉ. पीटर थिएलेन का कहना है हजारों सैंपलों में 11 प्रकार के म्यूटेशन सामान्य पाए गए हैं। लेकिन अभी दुनियाभर में इसकी एक ही स्ट्रेन मौजूद है। इसके स्पाइक प्रोटीन में बहुत कम तब्दीली आई है, लिहाजा यह अपना स्वरूप बहुत ज्यादा नहीं बदलेगा।  थिएलेन का कहना है कि अभी यह पूरी तरह नहीं बताया जा सकता कि वैक्सीन के इस्तेमाल के बाद कोरोना के जीनोम में किस तरह बदलाव आएगा। इसलिए हम इस पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं।