गुरुग्राम (हरियाणा)। जानलेवा नोवल कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए भारत कितना तैयार है, इस पर मेदांता के एमडी एवं विख्यात नेत्र विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन का कहना है कि इससे बचने के लिए हमें इससे मिलकर लडऩे की जरूरत है। वे बताते हैं कि कोरोना वायरस एक ‘जूनोटिक’ वायरस है। यानी यह जानवर से मनुष्य में फैलता है। वायरस पर एंटीबॉयोटिक दवाइयों का असर नहीं होता, इसलिए चिकित्सकों को नहीं पता कि इससे कैसे निपटा जाए। यह सच है कि कोरोनो वायरस बेहद घातक है। इसके लक्षण पता चलने से पहले ही कई बार यह फैल जाता है। कोई व्यक्ति यह अनुमान नहीं लगा सकता है कि उसके बगल में बैठा व्यक्ति संक्रमित है। भारत जैसे देश में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस भी गंभीर समस्या है, क्योंकि यहां ‘अंतिम उपाय’ यानी एंटीबायोटिक दवाइयों का बहुतायत में और गैर जरूरी इस्तेमाल होता है।
देश में हेल्थकेयर का खस्ताहाल ढांचा समस्या को और गंभीर बना रहा है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक देश में केवल 23,582 सरकारी अस्पताल है जिनमें लगभग 7,10,761 बेड हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के 2,79,588 बेड वाले 19,810 अस्पताल शामिल हैं। वहीं, शहरी क्षेत्रों में 4,31,173 बेड वाले 3,772 अस्पताल हैं। इसके अलावा 2,900 ब्लड बैंक है। हालत यह है कि देश में 10 लाख की आबादी पर मुश्किल से तीन ब्लड बैंक हैं। आंकड़ों के मुताबिक, भारत की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ऐसे में अगर वायरस देश में फैलता है तो स्वास्थ्य सेवाएं बेहद कठिन होंगी। कोरोना वायरस का कोई इलाज न होने और फैलने पर अनियंत्रित होने की आशंका को देखते हुए डॉक्टर रोकथाम पर जोर दे रहे हैं। स्थिति बेहद नाजुक दिखाई देती है। महामारी की रोकथाम, जांच और इलाज पर ग्लोबल स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2019 में कोई भी पूरी तरह तैयार नहीं मिला। 140 मानदंडों के आधार पर तैयार रिपोर्ट में 100 अंकों में ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी स्कोर औसतन 40.2 पर रहा। भारत 46.5 अंकों के साथ 57वें स्थान पर रहा। वहीं, दक्षिण-पूर्व एशिया में थाईलैंड और इंडोनेशिया की स्थिति काफी बेहतर है। थाईलैंड ने 73.2 अंक हासिल किए जबकि इंडोनेशिया को 56.6 अंक मिले। यह जमीनी सच्चाई है। हमें स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में लगातार निवेश, स्वास्थ्य सेवा तंत्र में सुधार को प्राथमिकता और विश्वास बहाली के लिए सामुदायिक भागीदारी पर जोर देना होगा। भारत ने इस दिशा में जो प्रदर्शन किया है, वह सकारात्मक रहा है। मई 2018 में स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के कारण निपाह वायरस की रोकथाम में सफलता मिली। इसी तरह से युगांडा में भी इबोला वायरस को रोकने में सफलता मिली। यह वायरस कांगो से फैला था। लेकिन बड़ी आबादी में फैलने से पहले इस पर अंकुश लगा लिया गया। ऐसी कुछ सफलताओं के बावजूद दुनिया पर स्वास्थ्य को बर्बाद करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को अस्थिर करने और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली महामारी का खतरा मंडरा रहा है। अगर महामारी भारत में फैलती है तो अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा नुकसान होगा। महामारी से निपटने की बात आती है तो ग्लोबलाइज्ड वल्र्ड की हकीकत यह है कि उसकी मजबूती ही सबसे कमजोर कड़ी है। इसलिए हमें सभी देशों के साथ मिलकर लडऩे की आवश्यकता है। हेल्थ, फाइनेंस और सिक्योरिटी क्षेत्र के विशेषज्ञों के एक स्वतंत्र समूह ग्लोबल प्रिपेयर्डनेस मॉनिटरिंग बोर्ड (जीपीएमबी) ने दुनिया के सभी नेताओं से स्वास्थ्य की इस आपात स्थिति से निपटने के लिए उचित उपाय करने की अपील की है। इनमें मजबूत तंत्र के अलावा राष्ट्रीय स्तर के समन्वयक के साथ जिम्मेदारी तय करनी है। इसके लिए समूचे समाज को लेकर तैयारियां करनी होंगी।