नोएडा। ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) में 100 से अधिक नर्स व अन्य स्वास्थ्यकर्मी घटिया पीपीई किट दिये जाने के विरोध में धरने पर बैठ गए। वहीं, अलीगढ़ के एक मेडिकल कॉलेज के कोरोना वायरस आइसोलेशन वार्ड में बेहतर सुविधाएं दिए जाने की मांग को लेकर जूनियर डॉक्टरों ने कामकाज ठप करने की चेतावनी दी है। ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान में धरने पर बैठे कर्मचारियों का आरोप है कि जिम्स प्रबंधन कर्मचारियों को घटिया किट देकर काम करवा रहा है, जिससे अब तक छह स्वास्थ्यकर्मी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। प्रदर्शनकारियों ने एक डॉक्टर पर दुर्व्यवहार का भी आरोप लगाया।
जिम्स के निदेशक ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डॉ. राकेश गुप्ता ने प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों की समस्याएं सुनकर उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी समस्याओं का जल्द निदान किया जाएगा। कर्मचारियों ने उन्हें लिखित शिकायत दी है। डॉ.गुप्ता ने बताया, ‘विरोध प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों से बात की गई है. उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुना गया है और उनका समाधान किया जाएगा। जिस डॉक्टर के ऊपर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है, उसके खिलाफ जांच की जाएगी। ’ उन्होंने बताया कि सभी कर्मचारी बातचीत के बाद काम पर लौट गए हैं।
इधर अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि अगर अस्पताल प्रशासन ने कोरोना वायरस आइसोलेशन वार्ड में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग नहीं मानी तो वे कामकाज ठप कर भूख हड़ताल करेंगे। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में करीब 600 जूनियर डॉक्टर हैं, जो कोरोना वायरस संक्रमित रोगियों की जांच और इलाज में कार्यरत हैं। रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. हमजा ने कहा, ‘जूनियर डॉक्टरों पर काम का बहुत दबाव है और काम करने के लिये अच्छी सुविधाएं भी नहीं हैं, इसलिएं जूनियर डॉक्टर चाहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर से इस मामले में हस्तक्षेप करें। ’ पिछले दस दिनों में तीन जूनियर डॉक्टर कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।
हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक ने अलीगढ़ में कोविड-19 फैलने के लिए जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज को जिम्मेदार ठहराकर विवाद पैदा कर दिया था। बीजेपी विधायक दलवीर सिंह ने आरोप लगाया था कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरोना वायरस का हब बन गया है और अस्पताल ने कोविड-19 के मरीजों के बारे में जिला प्रशासन को समय से अवगत नहीं कराया। उन्होंने उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री से इसकी जांच कराने की मांग की थी। इस बात का खंड करते हुए एएमयू के प्रवक्ता एस. किदवई ने कहा था कि अस्पताल प्रशासन मरीजों और चिकित्सकों की सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठा रहा है। यह आरोप पूरी तरह निराधार है कि अस्पताल समय पर प्रशासन को सूचित नहीं कर रहा है। पहले ही दिन से जिला प्रशासन को हर दिन की रिपोर्ट दी जा रही है।
कोरोना से लड़ने वाले खराब सुरक्षा उपकरणों की आवाज कई अस्पतालों में उठ चुकी है और सुरक्षा कर्मी इसका मुद्दा बार बार उठा रहे हैं। बीते मार्च को मुंबई में बृह्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के एक अस्पताल में नर्सों और पैरामेडिक्स कर्मचारियों समेत चिकित्साकर्मियों ने अस्पताल में कोविड-19 के मरीज की मौत के बाद उन्हें पृथक किए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था। इस दौरान अस्पताल के कुछ स्टाफ सदस्यों ने उन्हें दिए गए निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) की खराब गुणवत्ता का भी मुद्दा उठाया था। सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण बीते दिनों दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल से चार डॉक्टरों के इस्तीफा देने का भी मामला सामने आया था। इसके अलावा महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के एक सरकारी अस्पताल की नर्सों ने भी सुरक्षा उपकरणों की मांग की थी। नर्सों ने बताया था कि अस्पताल में पर्याप्त व्यक्तिगत सुरक्षा किट, आवश्यक दवाएं, सैनिटाइजर और हैंडवाश सुविधाएं नहीं हैं। बीते अप्रैल महीने में दिल्ली स्टेट हॉस्पिटल्स नर्सेज़ यूनियन ने सरकार और प्रशासन को काम रोकने की चेतावनी देते हुए मांग की थी कि पीपीई और मास्क की कमी दूर की जाए।