अहमदाबाद। आत्मनिर्भरता मिशन की सबसे बड़ी शुरुआत गुजरात का फार्मा उद्योग करने जा रहा है। दवा के रॉ मटेरियल या मॉलीक्यूल के आयात को रोककर। इसकी शुरुआत भी कर दी गई है। तीन साल में लक्ष्य 63 तरह के रॉ मटेरियल या उनके आयात को पूरी तरह रोक देना है। इससे तीन साल में 1.35 लाख करोड़ रुपए की बचत का प्लान है। यानी सालाना 45 हजार करोड़ रुपए। इस आयात में 65% हिस्सेदारी चीन की है। ऐसा हो जाने से करीब 200 से ज्यादा तरह की दवाओं के लिए रॉ मटेरियल गुजरात में ही बनना शुरू हो जाएगा। नई दवा यूनिट्स खुलेंगी और हजारों लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
इंडियन ड्रग मेन्युफेक्चरर एसोसिएशन, गुजरात के अध्यक्ष विरंची शाह का कहना है कि मेडिकल इक्विपमेंट का आयात भी बंद करने की योजना है। हाल में केंद्र सरकार ने देश में फार्मा उद्योग में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 10 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की है। इसमें करीब 7 हजार करोड़ रुपए की मदद बल्क ड्रग्स के लिए है, बाकी तीन हजार करोड़ रुपए का फंड मेडिकल डिवाइस के लिए इस्तेमाल होगा।
गुजरात की छोटी यानी 500-1000 करोड़ रुपए लागत वाली अधिकांश यूनिट्स दवा बनाने के लिए वुहान या चीन के अन्य शहरों से रॉ मटेरियल मंगाती हैं। इसमें सबसे ज्यादा फर्मेंटेड कंटेंट होता है, क्योंकि चीन ही इसे सबसे सस्ते में उपलब्ध कराता है। कुछ सिंथेटिक रॉ मटेरियल भी आयात होता है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत की तुलना में चीन एपीआई 3 प्रतिशत सस्ता पड़ता है। कोरोना काल में आयात बंद होने से यह लागत 25-30% तक बढ़ गई थी, इसीलिए दवाएं महंगी हुईं और कंपनियों को अपना मार्जिन भी घटाना पड़ा।
देश में दवाओं के उत्पादन में गुजरात की हिस्सेदारी एक तिहाई है। रोज करीब 500 करोड़ रु. से ज्यादा की दवाओं का उत्पादन होता है। अब तक 65% दवाओं के लिए रॉ मटेरियल चीन से आयात किया जाता है। इससे एजिथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक जैसी 200 से ज्यादा दवाएं बनती हैं। चीन से आयात रुकने से फार्मा यूनिट्स को भारी नुकसान हो रहा है। इसे ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने सहायता की घोषणा की है। इसे दवा कंपनियां अच्छे मौके की तरह ले रहीं हैं। इससे चीन पर निर्भरता खत्म हो जाएगी और कंपनियों का लाभ भी बढ़ेगा।