नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने एमबीबीएस के सिलेबस में आयुर्वेद को भी शामिल करने का निर्णय लिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि दिनोंदिन बढ़ते जा रहे बीमारियों के ग्राफ और इनके इलाज में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की सफलता के मद्देनजर ही इस विचार पर अमल हो रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की महानिदेशक सौम्या विश्वनाथन का कहना है कि आयुर्वेद की मदद से मरीजों का समग्र इलाज संभव हो सकेगा। उनका कहना है कि केवल एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के सहारे सभी रोगों की रोकथाम और उनका इलाज नहीं किया जा सकता है। वक्त की मांग को देखते हुए आयुर्वेद व अन्य देशी चिकित्सा पद्धति को फार्मल चिकित्सा प्रणाली में शामिल करने का फैसला किया गया है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में भारतीय चिकित्सा परिषद अहम कदम उठाते हुए एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में बदलाव की तैयारी शुरू कर चुका है।
इसके तहत एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में देसी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी को भी शामिल किया जाएगा। मतलब यह कि एमबीबीएस डॉक्टरों के पास न सिर्फ एलोपैथी बल्कि आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयों की जानकारी होगी। ऐसे में वे जरूरत के अनुसार मरीज के इलाज में प्रभावकारी दवा का इस्तेमाल कर सकेंगे। गौरतलब है कि किडनी, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों के इलाज में एलोपैथी भी अब आयुर्वेद का लोहा माना जाने लगा है। पिछले माह दिल्ली में हुए सोसायटी ऑफ रीनल न्यूट्रीशियन एंड मेटाबॉलिज्म (एसआरएनएमसी) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में किडनी के इलाज में आयुर्वेद को शामिल करने का मुद्दा छाया रहा। खासतौर से आयुर्वेदिक दवा नीरी केएफटी की किडनी की बीमारी को बढऩे से रोकने और खराब किडनी को काफी हद तक ठीक करने में मिल रही सफलता पर चर्चा हुई। एलोपैथ के डॉक्टरों का मानना था कि एलोपैथ में किडनी का कोई प्रभावी इलाज नहीं है। आयुर्वेद का पुनर्नवा, जिसका इस्तेमाल नीरी केएफटी में किया जाता है, किडनी की खराब कोशिकाओं की ठीक करने में सक्षम है। दुनियाभर के डॉक्टरों ने माना है कि डायबिटीज जैसी बीमारी के इलाज में आयुर्वेद अहम भूमिका निभा सकता है और इन दवाओं को आधुनिक चिकित्सा प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की जरूरत है।