धनबाद: जनता को गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से करीब 10 करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई स्टेट ऑफ आर्ट ड्रग टेस्टिंग लेबोरेटरी का लाभ राज्य को नहीं मिल रहा है। ड्रग सैंपलिंग और टेस्टिंग की बेहतर व्यवस्था के बावजूद ऐसा हो रहा है।
नियमत: ड्रग इंस्पेक्टर अपने-अपने जिलों से हर तरह की दवाओं के सैंपल जांच के लिए ड्रग लेबोरेटरी में भेजते हैं। जांच में अमानक पाई जाने वाली दवाएं बाजार से तत्काल हटा दी जाती है और निर्माता कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई की जाती है। मगर सरकारी सुस्ती के कारण करीब तीन माह से यहां दवाओं की जांच तो हो रही है, लेकिन जांच रिपोर्ट पर साइन नहीं हो रहे। इस कारण नकली दवा निर्माताओं कार्रवाई के अभाव में चांदी कूट रहे हैं।
पता चला कि प्रयोगशाला के निदेशक से लेकर सारे तकनीकी और अन्य कर्मचारियों का अनुबंध मार्च 2016 में खत्म हो गया। तीन माह बाद भी इनके सेवा विस्तार पर सरकार निर्णय नहीं ले सकी है।
राज्य औषधि जांच प्रयोगशाला के निदेशक सह सरकारी विश्लेषक सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा ने 24 जून को सरकार को भेजे पत्र में कहा है कि प्रयोगशाला के सभी कर्मियों का सेवा विस्तार मार्च 2016 से बकाया है। अंत समय में प्राप्त औषधि नमूनों और बैकलॉग नमूनों की जांच की गई है। वे लोग तकनीकी कार्य कर रहे हैं, लेकिन सेवा अवधि विस्तार नहीं होने से जांच रिपोर्ट पर वैधानिक कारणों से हस्ताक्षर नहीं कर पा रहे हैं। लैब में हर माह पूरे राज्य से करीब 100 ड्रग सैंपल की जांच होती है।
गौरतलब है कि रांची के नामकुम स्थित ड्रग लेबोरेटरी को चलाने के लिए वर्ष 2012 में निदेशक सह लोक विश्लेषक और अन्य छह तकनीकी पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई। ये नियुक्तियां दो साल के लिए थी। पिछले दो साल इनका अनुबंध विस्तार किया गया। मार्च 2016 में सरकार को फिर से इनका अनुबंध विस्तार करना था या फिर नई नियुक्ति करनी थी। लेकिन सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया। ऐसे में यहां जांच होने वाली दवाओं की जांच रिपोर्ट का कोई वैधानिक औचित्य नहीं है। दूसरी ओर प्रयोगशाला कर्मियों के अनुबंध विस्तार की फाइल सचिवालय में घूम रही है। एक-एक अधिकारी फाइल को महीनों लटका रहे हैं। सेवा समाप्ति के बाद भी सभी कर्मी अवधि विस्तार की उम्मीद में लैब तो आ रहे हैं, लेकिन तकनीकी कारणों से ड्रग सैंपल की जांच नहीं कर रहे। इसी कारण अब सैंपलों में भी देरी हो रही है।