• सवाल और चिंता: भारत के सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं, न ही पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण दवाएं,  फिर वृद्धि और विकास का गुमान क्यों करें
नयी दिल्ली: पिछले दिनों जब प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति उम्र 65 साल करने का निर्णय लिया, तो पता चला कि भारत में हर साल 50,000 के करीब डॉक्टर पैदा होते हैं, लेकिन 80 हजार से अधिक डॉक्टर भारत से विदेशों में सेवा/नौकरी के लिए जा रहे हैं। फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (फोर्डा) के अध्यक्ष डॉ. पंकज सोलंकी और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव पद्म सम्मान प्राप्त डॉ. के.के.अग्रवाल के सामने साझा हुई ऐसी कई गूढ़ जानकारियों से पूरी तरह समझ में आ गया कि देश में डॉक्टरों की कमी क्यों है। ताजा बात करें दवा क्षेत्र की,  तो भारत का फार्मा निर्यात 2015 में भी 7.55 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 12.54 अरब डालर पहुंच हासिल कर चीन से आगे निकल गया है। भारत जेनेरिक दवाओं का वैश्विक केंद्र है। देश के फार्मा उद्येाग के बाजार का आकार 20 अरब डालर से अधिक होने का अनुमान है।
वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी बयान में भारत का फार्मा निर्यात 2015 में 7.55 प्रतिशत बढक़र 11.66 अरब डालर से 12.54 अरब डालर पर पहुंच गया जबकि चीन का फार्मा निर्यात 5.3 प्रतिशत बढक़र 6.94 अरब डालर हो गया। बयान के मुताबिक, भारत अमेरिका, अफ्रीका और यूरोपीय संघ जैसे सभी महत्वपूर्ण बाजारों में चीन से आगे रहा। भारत का अमेरिका को फार्मा उत्पादों का निर्यात पिछले साल 23.4 प्रतिशत बढक़र 4.74 अरब डालर हो गया। भारत ने यूरोपीय संघ और अफ्रीका में भी फार्मा क्षेत्र में बढ़त बरकरार रखी जो 1.5 अरब डालर और 3.04 अरब डालर है। हालांकि भारत एपीआई आयात के लिए चीन पर निर्भर है जो दवाओं के लिए कच्चा माल है। उद्योग और सरकार ने चीन से आयातित एपीआई पर निर्भरता के संदर्भ में चिंता जाहिर की है।
इन समस्याओं का समाधान किए बगैर हम जन औषधि केंद्र, ई-फार्मेसी जैसी योजनाओं के सहारे कैसे स्वास्थ्य सुधार का सपना देख सकते हैं। प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ को गति भी तभी मिलेगी जब हमारे ‘कारीगर’ अपने देश में रुकेंगे और यहां उन्हें खोज, उत्पादन के लिए उचित माल और माहौल मिलेगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में इन्हीं सब दिक्कतों के कारण डॉक्टर भारत में पढक़र भी विदेशों में इसलिए भाग रहे हैं, क्योंकि उन्होंने यहां रिसर्च और सेवा के लिए उचित संसाधन नहीं मिल रहे। यही वजह कि अमेरिका में हर साल 18,000 डॉक्टर तैयार होते हैं जबकि भारत में यह आंकड़ा 50,000 के करीब (जनसंख्या के हिसाब से औसत) है, फिर भी डॉक्टरों के लिए तरस रहे हैं।