रोहतक: हरित और श्वेत क्रांति के अगुआ हरियाणा-पंजाब में नशे और अवसाद से खाक होती जिंदगी के बढ़ते ग्राफ ने स्वास्थ्य जगत, खासकर मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों को नए सिरे से सोचने को विवश कर दिया है। पीजीआईएमएस के आपातकालीन विभाग मे रोजाना करीब पांच केस ऐसे आ रहे है, जिनके पीछे मौत का कारण मानसिक तनाव और कुंठा पाई गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भी बेहद डरावनी है। विश्व में प्रतिवर्ष करीब आठ लाख लोग मानसिक विकारों से आत्महत्या कर रहे हैं। प्रतिदिन के हिसाब में यह आंकड़ा, तीन हजार लोगों की जिंदगी ले रहा है।

मानसिक स्वास्थ्य संस्थान निदेशक एवं सीईओ डॉ. राजीव गुप्ता की मानें तो पंद्रह से 24 आयु वर्ग के व्यक्तियों में मृत्यु का प्रमुख कारण आत्महत्या है। व्यक्ति भावनात्मक रुप से कमजोर होते जा रहे हैं और तनाव के कारण छोटी-छोटी बातें ट्रिगर का काम कर मौत की गहरी खाई में धकेल रही है।
पीजीआई हेल्थ यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. ओ.पी.कालरा कहते हैं कि भागदौड़ भरी जिंदगी से बढ़ती थकान, तनाव में बदल रही है और तनाव मौत की वजह। पीडि़त व्यक्ति जीवन की शक्ति को जागृत कर, समय पर मानसिक  रोग विशेषज्ञ एवं मनोवैज्ञानिक की सलाह  ले, तो बचाव हो सकता है। उन्होंने कहा कि अकेले चिकित्सक के भरोसे, आम आदमी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है समाज के हर वर्ग को इस “सुरसा” का आकार बढऩे से रोकना होगा। जागरुकता और संवाद सबसे सरल साधन है। डॉ. कालरा और डॉ. गुप्ता ने जोर दिया कि स्कूली शिक्षा और कॉलेज स्तर पर मानसिक मजबूती का खाका खींचने की दिशा में मेहनत जरूरी है।
 

कुछ कायदे, जिन्हें अपनाकर सुहाना हो सकता है जिंदगी का सफर

डॉ. राजीव गुप्ता ने बताया कि तनाव तथा अवसाद से दूर रहने के लिए योगा और उचित खानपान को पहली सूची में शामिल करें। मिजाज और आदतों में भारी परिवर्तन, अपनों से कटे-कटे रहना या दूरी बनाना छोड़ कर परस्पर रिश्ते मजबूत करें और हर विषय पर संवाद बढ़ाएं। शारीरिक गतिविधियों में परिवर्तन, नींद एवं वजन में परिवर्तन, शराब या नशें में बढोतरी की सूरत में चिकित्सक का सहयोग लेकर दूरी बनाएं। दफ्तर हो या घर व्यक्ति को चिड़चिड़ा स्वभाव से बचना चाहिए। महिलाएं खासकर अवसाद की गिरफ्त में ज्यादा जकड़ रहीं हैं जिसके पीेछे सामाजिक ताने-बाने का बिगड़ा रवैया जिम्मेदार है।