बदायूं। शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जिसमें कोई बीमार न हो। यदि ऐसा है भी तो कभी न कभी दवाओं की जरूरत तो सबको पड़ती है, मगर दवाओं के दामों को लेकर हर कोई परेशान है। कोरोना काल में जहां कामकाजी आदमी के व्यापार पर फर्क पड़ा। वहीं दवाओं के बढ़ते दामों ने उन परिवारों के लिए परेशानी खड़ी की है।

जहां लोग बीमार हैं और दवाओं पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि कोरोना काल में उन दवाओं का ज्यादा प्रयोग हुआ जो इस मर्ज में काम आती थी साथ ही विटामिन सी की दवाओं की बिक्री भी खूब हुई। इसका फायदा भी दवा कंपनियों ने उठाया। विटामिन सी की सीलिन दवा की बीस गोलियों का पत्ता जहां पहले 25 रुपये का था वहीं अब इसकी कीमत 38 रुपये हो गई है।

इसी प्रकार आइवरमेक्टिन सॉल्ट वाली टेबलेट पहले 27 रुपये की थी वहीं कुछ कंपनियों ने इसके दाम बढ़ाकर अब 150 रुपये तक कर दिए हैं। हालांकि कुछ कंपनियां अभी भी इसके दाम 40 रुपये तक ले रही हैं। दरअसल अनलॉक के बाद जरूरी दवाओं के दामों में दस से बीस प्रतिशत की तेजी आई है। कुछ खास दवाओं के साथ सुरक्षित मानी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के दाम भी तेजी से बढ़े हैं।

जानकारों के अनुसार, कोरोना काल में फार्मा कंपनियों को हुए घाटे से उबरने के लिए दवाओं के दाम बढ़ाए गए हैं। एक ओर सरकार दवाएं सस्ती करने का दावा करती है तो वहीं हर तिमाही पर दवाओं के दाम दस प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं। दवा के क्षेत्र के जानकारों के अनुसार, दरअसल दवा कंपनियां नए बैच नंबर के साथ कीमत बढ़ाने का खेल करती हैं। बाजार में दवाओं की मांग बढ़ते ही नया बैच जारी कर दिया जाता है।

दवाओं की छोटी कंपनियां कम उत्पादन दिखाकर लगातार बैच नंबर बदलती रहती हैं। इसके साथ ही दवा का मूल्य भी बढ़ा देती हैं। हर बैच नंबर के साथ दो रुपये से लेकर पांच रुपये तक की बढ़ोतरी कर दी जाती है जो छह माह में दस से तीस प्रतिशत तक पहुंच जाती है। जिला अस्पताल की ओर से साल की शुरुआत में मांग कंपनी को भेजी जाती है। उसी के अनुरूप दवाओं की सप्लाई जिला अस्पताल को की जाती है।

इस साल भी शुरुआत में जिला अस्पताल की ओर से जो मांग पत्र भेजा गया है, उसमें डिक्लोफेनिक और सिट्राजिन के लिए चार-चार लाख गोली की डिमांड गई थी। इनमें से कोई दवा नहीं आयी। हालांकि डिक्लोफेनिक की जगह पर ब्रूफिन गोली भेजी गई थी। वह भी महज 74 हजार गोली थी। वहीं एंटीबायोटिक की बात करें तो डिक्सी की डिमांड दो लाख की थी लेकिन यह केवल 70 हजार आयी।

ऐसे में जिला अस्पताल में दवाओं के अभाव में यहां आने वाले मरीजों को भी मेडिकल स्टोर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। कोविड-19 के दौरान सभी व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। दवा कंपनियां भी इससे अछूती नहीं रहीं। हालांकि स्वास्थ्य सेवाओं को बंद से दूर रखा गया था, लेकिन यह भी सच है कि कोरोना काल में दवाओं की बिक्री में काफी कमी आई।

अब जब हालात पटरी पर लौटे हैं तो जरूरी दवाओं के दामों में पिछले तीन माह में दस से बीस प्रतिशत की तेजी आई है। जानकार बताते हैं कि दरअसल, कोरोना काल में दवा कंपनियों की बिक्री काफी प्रभावित हुई थी। लोगों ने दवाएं तो खरीदीं लेकिन यह खरीदारी केवल बहुत जरूरी दवाओं तक सिमट गई। ऐसे में कंपनियों की आय पर भी प्रभाव पड़ा। पिछले कुछ महीनों से अनलॉक के दौरान दवाओं के दामों में आई तेजी इसी घाटे से उबरने का प्रयास है। ऐसे में मरीज परेशान हो रहे हैं।