नई दिल्ली। नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने 13 आवश्यक दवाओं की खुदरा कीमतें तय की हैं। राष्ट्रीय दवा मूल्य नियामक ने जिन दवाओं की कीमतों में संशोधन किया है, उनमें फंगल इन्फेक्शन, हाई बीपी, हृदय रोग, डायबिटीज, कोलेस्ट्रोल, दर्द निवारक व बुखार की दवा सहित जले के उपचार के लिए इस्तेमाल होने वाली क्रीम शामिल है। एनपीपीए द्वारा जारी अधिसूचना में 13 दवाओं के खुदरा मूल्य तय किए गए हैं। नियामक ने कीमतों में यह संशोधन औषधि (कीमत नियंत्रण) आदेश, 2013 के तहत किया है। बताते चलें कि नियामक ने जिन औषधियों के खुदरा मूल्य को तय किया है, उनका विनिर्माण एवं विपणन विभिन्न कंपनियां करती हैं। इन औषधियों में टेलमिसार्टन, एमलाडिपाइन, हाइड्रो क्लोरा क्थयाजाइड टैबलेट, मेटोप्रोलोल रीमीप्रिल टैबलेट, रोजुवास्टाटिन क्लोपिडोग्रेल कैप्सूल, एसोक्सीसिलीन पोटेशियम कलेवुलेनेट सस्पेंशन, मेटफोर्मिन ग्लीमेपिरीड, डाइक्लोफेनेक एबसोल्यूट एल्कोहल स्प्रे, सिल्वर सल्फाडाइजिन क्रीम व ए फाटेरिसिन बी लिपिड इंजेक्शन शामिल हैं। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि विनिर्माता तय की गई कीमत से ज्यादा नहीं वसूल सकते। अगर ज्यादा राशि वसूल की जाती है, तो औषधि (कीमत नियंत्रण) आदेश-2013 के प्रावधानों के तहत ब्याज सहित ओवरचार्ज की गई राशि विनिर्माता को जमा करवानी होगी। इसके अलावा अगर किसी दवा का निर्माण बंद करना है, तो छह माह पूर्व एनपीपीए को इस बारे में बताना होगा। गौरतलब है कि राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण, केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय के विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र निकाय है, जो देश में दवा की कीमतों की निगरानी और नियंत्रण करता है।
केंद्र सरकार ने दवाओं में इस्तेमाल होने वाले एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) पर क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य कर दिया है। अब आठ सितंबर से एपीआई में क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य होगा। केंद्र सरकार ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। एपीआई में क्यूआर कोड लगाने से असली और नकली दवाओं की पहचान में आसानी होगी। साथ ही इससे दवा बनाने वाली कंपनी को ट्रैक करना आसान होगा। भारत हर साल 13000 करोड़ रुपए का एपीआई आयात करता है।