मुंबई। भारत के औषधि मूल्य प्राधिकरण ने कैंसर की 42 दवाओं पर मुनाफे की सीमा 30 प्रतिशत तय कर दी है। इससे पहले से ही दबाव में चल रहे अस्पतालों के मुनाफे में कमी आ सकती है। बहरहाल सरकार के इस फैसले का दवा कंपनियों पर कोई असर पडऩे की उम्मीद नहीं है।
जानकारों का कहना है कि कैंसर की करीब 70 प्रतिशत दवाएं अस्पतालों के माध्यम से ही बिकती हैं। कैंसर की दवाओं का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) मूल्य के आधार पर तय करने का नया फॉर्मूला उत्पाद की बिक्री के पहले केंद्र या स्टॉकिस्ट को दिए गए मूल्य के आधार पर तय होना है। अगर आसान शब्दों में कहें तो जिस दाम पर दवा कंपनियां दवाओं की बिक्री स्टॉकिस्टों और वितरकों को करती हैं, उस मूल्य और मरीजों को मिलने वाले मूल्य के बीच का मुनाफा तय किया गया है।
अस्पतालों में कैंसर की दवाएं बहुत ज्यादा मुनाफा रखकर बेची जाती हैं और सरकार के फैसले से एमआरपी कम होगा। इससे अस्पतालों का मुनाफा प्रभावित होगा। अगर मोटे तौर पर गणना की जाए तो कैंसर की दवाओं का एमआरपी 25 से 85 प्रतिशत तक कम होगा।
दवाओं, मेडिकल उपकरणों जैसे स्टेंट, इंप्लांट इत्यादि से अस्पतालों को मोटा मुनाफा होता है। संगठित निजी अस्पताल शृंखलाओं में हेल्थकेयर ग्लोबल इंटरप्राइजेज लिमिटेड (एचसीजी) सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकती है क्योंकि उसके कुल कारोबार में कैंसर के उपचार की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत है। मुंबई के एक विश्लेषक ने बताया कि उनके कुल 30 प्रतिशत मुनाफे में दवाओं से एससीजी की कमाई करीब 27 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया और उपचार में 75 प्रतिशत से ज्यादा गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अपोलो हॉस्पिटल्स, मैक्स इंडिया और फोर्टिस की कैंसर के उपचार से आने वाले राजस्व की हिस्सेदारी 10-15 प्रतिशत है। फोर्टिस हेल्थकेयर के एक सूत्र ने कहा कि वे अपने सप्लाई चेन पार्टनर के साथ मिलकर असर का आकलन कर रहे हैं। वहीं अपोलो हॉस्पिटल्स इंटरप्राइज लिमिटेड (एएचईएल) की कार्यकारी उपाध्यक्ष शोभना कामिनेनी ने कहा कि हम इस फैसले के असर के बारे में अध्ययन कर रहे हैं, इसलिए इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि अपोलो हॉस्पिटल पर आर्थिक असर कम होगा और मरीजों को ज्यादा लाभ होगा। अपोलो हॉस्पिटल को मरीजों को यह लाभ देकर खुशी होगी। एक प्रमुख दवा कंपनी के प्रमुख ने कहा कि अस्पताल उन दवाओंं व उत्पादों को खरीदने को प्राथमिकता देते हैं, जिन पर एमआरपी ज्यादा होता है और इससे उन्हें फायदा होता है। उन्होंने कहा कि दवाओं का एमआरपी कम होने से निश्चित रूप से अस्पतालोंं की कमाई घटेगी। बहरहाल, दवा फर्मों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
उद्योग के दिग्गजों का मानना है कि वे अपने शुल्क ढांचे और सेवाओं पर आने वाले खर्च पर फिर से विचार करेंगे। पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल के मुख्य परिचालन अधिकारी व सीआईआई के पश्चिमी क्षेत्र के हेल्थकेयर के चेयरमैन जय चक्रवर्ती ने कहा कि सरकार की नीति जीवनरक्षक दवाओंं को वहनीय बनाने की है। अगर नियमन के दायरे में आने वाला मूल्य तार्किक है तो बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। मेरा मानना है कि अस्पतालों को अपने शुल्क ढांचे पर फिर से विचार करने की जरूरत है। सेवाओं के विस्तार और कुशलता बढ़ाकर मरीजों की संख्या बढ़ाने से मुनाफा बढ़ाया जा सकता है। मुनाफे के लिए सिर्फ दवाओं के दाम पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। भारत के एक और प्रमुख निजी अस्पताल के चेयरमैन ने कहा कि होमकेयर जैसी सेवाओं पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है, जिसे राजस्व व मुनाफे में बढ़ोतरी हो। उन्होंने कहा कि अस्पतालों को कमाई के वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देना चाहिए। बहरहाल, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि मुनाफे पर लगाम लगाने की कार्रवाई 42 दवाओं से आगे भी ले जाई जानी चाहिए। मौजूदा अधिसूचना के दायरे में 72 मेडिसिन फॉम्र्युलेशन हैं, जो 335 विभिन्न ब्रांडों के तहत 42 दवाएं होती हैं। एचसीजी के सीईओ डॉ. बीएस अजय कुमार ने कहा कि कारोबारी मुनाफा तय करना कम अवधि के लिए मरीजों के लिए बेहतर है, लेकिन इससे इलाज की गुणवत्ता, आगे के शोध और अस्पताल के तकनीकी उन्नयन पर असर पड़ेगा। सरकार को अपने फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम अभी फैसले का मूल्यांकन कर रहे हैं और हमें लगता है कि इसका बहुत ज्यादा असर नहीं पडऩे वाला है। वित्त वर्ष 19 की दूसरी छमाही तक के इक्रा के विश्लेषण के मुताबिक कैलेंडर वर्ष 2017 की शुरुआत से हॉस्पिटल सेक्टर का मुनाफा कम हो रहा है। वस्तु एवं सेवा कर लागू होने और स्टेंट व कृत्रिम कूल्हे का दाम तय किए जाने का असर हुआ है।