चंडीगढ़। देश में दवा कंपनियों की नजर अब लाभ देने वाले ब्रांडों पर टिक गई है। यही कारण है कि हर साल हजारों नए ब्रांड के साथ बढऩे वाले 1.3 लाख करोड़ रुपये के इस दवा बाजार में अब सुस्ती देखी जा रही है। आंकड़े बताते हंै कि 2018-19 में घरेलू बाजार में 2,663 ब्रांड लॉन्च किए गए, जो पिछले पांच साल में सबसे कम संख्या है। 2014-15 में यह आंकड़ा 3,836 था।
प्रत्येक वित्त वर्ष में पेश किए जाने वाले ब्रांडों की संख्या में कमी आई है। डर्मेटोलॉजी, विटामिंस-मिनरल्स-न्यूट्रिएंट् स, और गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी का नए ब्रांडों की संख्या में अहम योगदान है। वर्ष 2018-19 में, 973 ब्रांड बाजार से बाहर हुए जबकि 2017-18 में यह आंकड़ा 863 था। ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्युटिकल्स इंडिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उसने अपना पोर्टफोलियो कुछ समय पहले के 130 से घटाकर 20 किया है। जीएसके फार्मा के उपाध्यक्ष (दक्षिण एशिया) और प्रबंध निदेशक (भारत) ए वैधीश ने कंपनी की वित्त वर्ष 2019 की सालाना रिपोर्ट में कहा कि हमने अपने उत्पाद पोर्टफोलियो को अनुकूल बनाया है और ऐसे कई प्रमुख ब्रांडों की पहचान की है जिनके लिए हमने संसाधनों पर जोर दिया है। हम अपने व्यापार भागीदारों के साथ जुडऩे के लिए एक बेहद संगठित दृष्टिकोण से भी संपन्न है। विश्लेषकों का मानना है कि प्रमुख दवा कंपनियां मुनाफे वाले ब्रांडों पर ध्यान दे रही हैं। एडलवाइस के विश्लेषक दीपक मलिक ने कहा कि आशंकित कॉम्बिनेशन दवाओं पर शिकंजा कसे जाने, नई कॉम्बिनेशन दवाओं के लिए मंजूरी में विलंब, और कीमत नियंत्रण प्रणाली से दवा निर्माता कंपनियां नए ब्रांडों को पेश करने को लेकर सोच-समझ कर निर्णय ले रही हैं। यदि कोई ब्रांड चार-पांच में भी लोकप्रिय नहीं हो पाता है तो वह अक्सर प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाता है। उन्होंने कहा कि कैडिला हेल्थकेयर ने पिछले साल भी घरेलू बाजार से 100 ब्रांड हटाए जबकि उसने 50 नए ब्रांड पेश किए थे।
एक दवा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह चलन बरकरार है। कमजोर ब्रांडों को बंद किया जा रहा है। हालांकि अब दवा उद्योग में वृद्घि की रफ्तार कमजोर है और घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों, दोनों में कीमत का दबाव है। इससे कंपनियों को सिर्फ मुनाफे वाले ब्रांडों पर ध्यान देना जरूरी हो गया है। कोई नया ब्रांड शुरू करने के लिए काफी संसाधन, मानव श्रम, कानूनी मंजूरियों, दवा मंजूरियों आदि की जरूरत होती है। इसलिए, नई ब्रांड पेशकशों में कमी आई है और कंपनियां इसे लेकर सतर्कता बरत रही हैं। विश्लेषकों ने कहा कि सन फार्मास्युटिकल्स, कैडिला हेल्थकेयर और टॉरंट फार्मा अपने कमजोर ब्रांडों का पुनर्गठन कर रही हैं। सन फार्मा ने पिछले 12 महीनों के दौरान एंटी-इन्फेक्टिव कैटेगरी पर पुन: ध्यान केंद्रित किया है। इस संबंध में टॉरंट और सन फार्मा को भेजे गए ईमेल संदेश का कोई जवाब नहीं मिला है। यूनिकेम के ब्रांडेड जेनेरिक पोर्टफोलियो के अधिग्रहण के बाद से टॉरंट फार्मा ने अपने पोर्टफोलियो का पुनर्गठन किया है।