मुंबई। भारतीय दवा कंपनियां भले ही नई दवाओं की पेशकश और नई थेरेपी में विस्तार से इस वित्त वर्ष में बढ़त का लक्ष्य लेकर चल रही हों, लेकिन सरकार के दवा की कीमतों में बदलाव के प्रस्ताव से उनकी योजनाओं पर ब्रेक लग सकता है। उत्पादों की पेशकश और हृदय रोग व मेटबॉलिक के इलाज वाली दवाओं में बढ़त के दम पर सिप्ला ने 2018-19 में देसी बिक्री 1 अरब डॉलर यानी 67 अरब रुपये रहने का अनुमान जताया है। पिछले वित्त वर्ष में सिप्ला की बिक्री करीब 59 अरब रुपये की रही थी और 1 अरब डॉलर की बिक्री के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इसे करीब 15 फीसदी बढ़त हासिल करनी होगी।
ग्लेनमार्क भी अलग-अलग तरह की दवाएं और बिना पर्ची के बिकने वाली दवाओं (ओटीसी) की पेशकश में विस्तार के दम पर 12 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी का लक्ष्य लेकर चल रही है। वहीं ल्यूपिन अधिग्रहण का आकलन कर रही है और तेजी से बढऩे वाले थैरेपी क्षेत्र मसलन डर्मेटोलॉजी, यूरोलॉजी व ऑनकोलजी में विस्तार की योजना बना रही है। दवा कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में जोखिम ज्यादा है और प्रतिफल में अनिश्चितता होती है, वहीं इनका देसी कारोबार स्थिर है। इनका परिचालन मार्जिन औसतन 25-30 फीसदी है। भारतीय कारोबार में अनुपालन व शोध और विकास की लागत कम है और क्रेडिट साइकल छोटी है। ऐसे में देसी बाजार में सुधार महत्वपूर्ण है। हालांकि गैर-अधिसूचित दवाओं की कीमतें नियंत्रित करने का सरकारी प्रस्ताव इसके लिए सही साबित नहीं होगा।
इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस के महासचिव डी.जी. शाह ने कहा कि यह प्रस्ताव नुकसान पहुंचाने वाला है। अगर इसे लागू किया गया तो उद्योग को झटका लगेगा और वह नवोन्मेष व गुणवत्ता आदि पर निवेश नहीं कर पाएगा। अभी 850 अधिसूचित दवाओं की कीमतें थोक मूल्य सूचकांक के मुताबिक तय की गई हैं। सरकार अब इसका विस्तार सभी दवाओं पर करने पर विचार कर रही है। दवा कंपनियों ने सरकार के कीमत प्रस्ताव पर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की है। दवा कंपनियों ने हालांकि मौजूदा वित्त वर्ष में बढ़त में सुधार को लेकर उम्मीद जताई। फरवरी में सिप्ला ने स्विस दवा निर्माता रॉशे के साथ साझेदारी की है, जो आर्थराइटिस व कैंसर के इलाज की दवा बेचने के लिए हुई है।