नई दिल्ली। दवा कंपनियों के प्रचार प्रसार के तौर तरीकों पर जल्द ही नकेल लगने वाली है। इसके लिए समान आचार संहिता का संशोधित मसौदा तैयार हो गया है। यह पड़ताल के लिए कानून मंत्रालय के पास भी पहुंच चुका है । इसके लागू होने के बाद दवा कंपनियों के लिए तौहफे और रिश्वत देकर डॉक्टरों को अपने उत्दपाद के पक्ष में करना आसान नहीं रह जाएगा।

सरकार दवाओं के प्रचार प्रसार के कंपनियों के तौर तरीकों पर अंकुश लगाना चाहती है। यह अगस्त में ही लागू हो जाता लेकिन कानून मंत्रालय ने अड़ंगा लगा दिया । पहले भेजे गए मसौदे को कानून मंत्रालय ने यह कह कर लौटा दिया कि उसमें अपराध के लिए वित्तीय जुर्माना लगाने का अधिकार आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानूनी प्रारूप से संलग्न नहीं है।

सूत्रों ने बताया कि रसायन व खाद्य मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल विभाग ने संशोधित कर मसौदे को फिर कानून मंत्रालय के पास भेज दिया है। कानून मंत्रालय ने यह भी पूछा था कि क्या दवा विपणन व्यवहार के लिए प्रस्तावित समान आचार संहिता मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पैशे से संबंधित व्यवहार, शिष्टाचार और नैतिकता संबंधी आचार संहिता के ही समान है। डॉक्टरों के लिए दवा या अन्य संबंद्धित सेवा कंपनियों के मुतल्लिक इसका पालन करना अनिवार्य है या नहीं।

कानून मंत्रालय ने कहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के कुछ प्रावधान कठोरता के साथ समाहित नहीं हैं। कानून मंत्रालय ने इस लिहाज से प्रस्ताव को औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) के तहत लाने की सलाह दी थी।

सूत्रों की जानकारी के अनुसार इस आचार संहिता को नए कानून या डीपीसीओ के तहत लाए जाने की संभावना कतई नहीं है। विभाग इसे आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत ही लागू करेगा। दिसंबर के शुरू में ही भेजे गए संशोधित मसौदे में जुर्माने की मात्रा में कोई फेरबदल नहीं हुआ है।

मसौदे के अनुसार आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली कंपनियों को जुर्माना भरना पड़ेगा। आशा के अनुरूप इस प्रस्ताव में उल्लंघन करने वाली कंपनी के सीईओ के गिरफ्तार करने का प्रावधन नहीं है। कंपनी की उल्लंघन के क्रम में जब्त दवाओं के अनुरूप ही जुर्माने का प्रावधान है।

प्रस्तावित आचार संहिता के अनुसार कोई भी फार्मा कंपनी, उसके एजेंट मसलन वितरक, थोक विक्रेता या खुदा विक्रेता दवा लिखने या उसकी आपूर्ति के लिए अधिकृत व्यक्ति को न तो कोई तोहफा दे सकता है और न ही कोई आर्थिक लाभ पहुंचा सकता, न ही ऐसे वायदे कर सकता है । इसके तहत डाक्टरों को मौजमस्ती के लिए टिकट देना उल्लंघन माना जाएगा।

डॉक्टरों और फार्मासिष्टों को विदेश भ्रमण, तौहफे या अन्य आर्थिक लाभ के रूप रिश्वत देने के मार्केंटिंग के अनैतिक तौर तरीकों की शिकायतों की भरमार  के मद्देनजर सरकार 2011 में ही स्वैच्छिक मार्केटिंग कोड लेकर आई थी । इसे दवा कंपनियों को लागू करना था। लेकिन वह निष्प्रभावी साबित हुआ। नतीजतन फर्मास्यूटिकल विभाग को जुर्माने सहित अनिवार्य आचार संहिता की तरफ कदम बढ़ाना पड़ा है।