नई दिल्ली। चिडिय़ाघर में जानवरों के इलाज के नाम पर दवा खरीद में गड़बड़ी का मामला प्रकाश में आया है। बताया गया है कि कई दवाइयां बाजार भाव से लगभग दोगुनी कीमत पर खरीदी गई। कुछ दवाइयां सिर्फ कागजों में ही खरीदी गईं। यानी उन दवाओं के बिल जमा कराए गए, लेकिन वह कभी चिडिय़ाघर के मेडिसिन स्टोर में नहीं आईं। जानकारी अनुसार 25 अप्रैल को दिल्ली के चिडिय़ाघर के मेडिसिन डिपार्टमेंट में 62 हजार 160 रुपये के बिल नंबर-155 की एंट्री हुई। स्टोर रूम में उस दवाई का पता लगाया गया कि क्या वह वहां रखी है या नहीं। रिकॉर्ड चेक करने पर दवाई वहां नहीं मिली। स्टोर कीपर ने भी बताया कि इस बिल नंबर की दवाई उसे कभी नहीं मिली, लेकिन दवा की एंट्री रजिस्टर में हुई है। इसी तरह कई दवाइयों की फर्जी एंट्री रजिस्टर में मिलने की बात बताई गई है। इसके अलावा पिछले साल अक्टूबर में एक और दवाई की खरीद में गड़बड़ी की बात पकड़ी गई है। बताया गया है कि जिस दवा की कीमत मार्केट में 10 हजार रुपये थी, उसे 18 हजार 500 रुपये में खरीदा गया। इस बारे में जू डायरेक्टर रेनू सिंह का कहना है कि इस तरह की शिकायत मिली है, उसकी जांच कराई जा रही है। दवाइयों की खरीद और रिकॉर्ड के मिलान के बाद ही सच्चाई का पता चल पाएगा। रिपोर्ट आने पर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि चिडिय़ाघर में दवाइयां खरीदने के लिए एक गाइडलाइन है। इसमें 15 हजार से एक लाख रुपए तक की कोई दवा खरीदी जाती है, तो वह तीन सदस्यों की कमेटी से पास होने के बाद ही ली जाती है, वह भी टेंडर के जरिए। आरोप है कि इन दवाइयों की खरीद में किसी भी नियम का पालन नहीं हुआ। पता लगा है कि अधिकतर दवाइयां एक ही कंपनी से खरीदी गईं। उन दवाओं को खरीदने की जानकारी भी मिली है, जिनकी जरूरत उस समय नहीं थी।