भीलवाड़ा। पेंशनर्स को दी जाने वाली दवा की खरीद में एक बार फिर गड़बड़झाला हो गया है। सहकारी उपभोक्ता भंडार के अधिकारियों ने नियमों की अनदेखी कर पसंदीदा फर्मों को ऑर्डर दे दिया। किस फर्म से कितने की दवा खरीदी और कितना भुगतान किया, इसकी जांच तक भी नहीं की गई। पूर्व में भी भंडार में दवा खरीद के नाम पर वित्तीय अनियमितता सामने आई थी। इसके बाद कलक्टर ने भुगतान पर रोक लगा दी थी। अब फिर से दवा खरीद में अनियमितता सामने आने पर भुगतान रोक लिया गया है।
बता दें कि भंडार की ओर से हर माह पेंशनरों को लाखों रुपए की दवा दी जाती है। इसके बदले जिला कोषाधिकारी की ओर से भंडार को भुगतान किया जाता है। भंडार की ओर से मनमर्जी से दवा खरीदकर पेंशनरों को देने के मामले में जिला कोषाधिकारी ने भी जांच में गड़बड़ी पाई थी। इसके बाद उन्होंने बिल रोक दिए। अभी भी जिला कोषाधिकारी ने 1.52 करोड़ का भुगतान रोक रखा है। सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार की ओर से अपनी 15 दुकानों के लिए दवा खरीदने के नियम नहीं हंै। जिस दुकान पर जिस दवा की जरूरत होती है, उसी कम्पनी के डीलर या डिस्ट्रीब्यूटर्स से दवा खरीदी जाती है। जेनरिक दवा के लिए एक बार टेंडर किया था। उसमें किसी के हिस्सा नहीं लेने पर पुन: टेंडर भी नहीं किया। जेनरिक दवा भी अन्य दुकानों से खरीदी जा रही है। पेंशनर्स को मिलने वाली दवा व एनएसी की क्रॉस चेकिंग का भी प्रावधान नहीं है। इसी कारण भण्डार में होने वाली गड़बड़ी का खुलासा नहीं हो सका है।
कोष कार्यालय ने भंडार का अप्रैल 2017 से अब तक 11.19 लाख रुपए का भुगतान काट दिया है। कोष कार्यालय का तर्क है कि मरीज को चिकित्सक की ओर से लिखी दवा न देकर दूसरी दवा दी गई है। उधर, भंडार का तर्क है कि सब्स्टीट्यूट दवा वे होती हैं जिनका साल्ट बदल दिया जाए। ब्रांडनेम से लिखी दवा के बदले उसी साल्ट की दवा देना सब्स्टीट्यूसन में नहीं आता। वर्ष 2010 में भी इसी तरह कोष कार्यालय की ओर से राशि रोकने पर भंडार ने दवा देना बन्द कर दिया था, लेकिन तत्कालीन कलक्टर के आश्वासन पर पुन: दवा देना शुरू किया था। भंडार के अनुसार दिसम्बर 2017 तक 5.99 करोड़ की दवा खरीदी गई।
कोष कार्यालय में 5.69 करोड़ का बिल भिजवाया गया। इसमें एक करोड़ 52 लाख 58 हजार 119 रुपए के बिल का भुगतान रोक दिया है। इसी प्रकार भंडार ने अप्रैल 2014 से दिसम्बर 2017 तक करीब 25.60 करोड़ की दवा खरीद की, जबकि कोष कार्यालय में पेंशनरों के 27.80 करोड़ का बिल भेजा है। इसमें से 26 करोड़ 16 लाख 50 हजार का भुगतान किया तथा एक करोड़ 52 लाख 54 हजार 119 रुपए का भुगतान रोक दिया तथा 11.19 लाख की कटौती कर दी गई है। सहकारी उपभोक्ता भंडार के महाप्रबन्धक एमएल चावला का कहना है कि दवा की खरीद के लिए कमेटी बनी है। कमेटी को 50 हजार रुपए तक की दवा खरीद का अधिकार है। यह खरीद सहकारी रजिस्ट्रार समिति के 11 सितम्बर 2013 को जारी आदेश के अनुसार बिना किसी टेंडर के डीलर या डिस्ट्रीब्यूटर्स से खरीद रहे हैं। दवा खरीद में कोई गड़बड़ी नहीं है।