औरंगाबाद। मेडिकल स्टोर संचालक दवा की बिक्री में काली कमाई कर ग्राहकों को लूट रहे हैं। हम बात कर रहे हैं खुले पैसों की। बाजार में 10, 20, 50 पैसे का चलन भले ही बंद हो गया हो, लेकिन इन्हीं पैसों की बदौलत जिले के दुकानदार हर माह लाखों रुपये से अधिक कमा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप गैस की दवा जिंटेक खरीदते हैं तो इसकी 30 गोलियों के पत्ते पर एमआरपी 22 रुपये 62 पैसे है लेकिन आपको इन्हें खरीदने के लिए 23 रुपये देने होंगे। यानी दुकानदार को 38 पैसे का सीधा फायदा होता है। बाजार में 90 प्रतिशत ऐसी दवाइयां हैं जिनकी कीमत पूर्णत: रुपये में नहीं है। इन दवाओं की बिक्री में दवा दुकानदार इसी तरह से खुले पैसों के सहारे लाखों कमा रहे हैं। इसका कोई लेखा-जोखा नहीं होता। इससे वे ग्राहकों को तो लूट ही रहे हैं, साथ ही औषधि विभाग के नियमों को भी ठेंगा दिखा रहे हैं।
गौरतलब है कि मेडिकल स्टोर एक ऐसी जगह है जहां मोलभाव नहीं होता है। दवा कंपनियां इस बात का फायदा उठा कर ऐसी कीमतें तय करती हैं। ऐसे में 10, 20, 30 व 40 पैसे दवाओं पर अंकित होने पर दवा दुकानदार पूरी राशि की मांग करते हैं। ग्राहक भी एक-दो बार का मामला होने के कारण इतना गौर नहीं करते। इसके अलावा, कई ब्रांडेड दवाइयां है जो मेडिकल स्टोर पर ब्लैक में बिक रही हैं। एक दवा दुकानदार के अनुसार डेक्सोना इंजेक्शन की कीमत 5.98 रुपये है। इन दिनों यह 10 रुपये में बिक रही है। इसके अलावा पेनीडियोर 12 लाख व पेनीडियोर आठ लाख इंजेक्शन की कीमत 12 व आठ रुपये है, पर ये दोनों इंजेक्शन 50 रुपये में बिक रहे हैं। इसके अलावा भी कई ऐसी दवाइयां हैं जैसे पैक्सिम टैबलेट, इंजेक्शन बूटा प्रॉक्सीफॉम कैप्सूल आदि जो प्रिंट रेट से कहीं ज्यादा कीमत में बिकती हैं।
औषधि विभाग का नियम है कि कोई भी मेडिकल स्टोर वाले दवा की प्रिंट रेट से अधिक कीमत ग्राहक से नहीं ले सकते हैं। यह नियम औरंगाबाद के अधिकतर ब्रांडेड दवाओं के मेडिकल स्टोर पर टूट रहा है। 15.30 रुपये प्रिंट रेट की दवा के लिए ग्राहक से 16 रुपये लिये जाते हैं। ओवरचार्जिंग की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
इस बारे में सिविल सर्जन डॉ. सुरेंद्र प्रसाद ने बताया कि कुछ दवाओं का रेट सरकार, तो कुछ का कंपनियां तय करती हैं। ऐसे में ये सारी चीजे उनके दायरे से बाहर हैं। इसके लिए किसी प्रकार का कोई नियम-कानून अब तक नहीं है। जिसके तहत इस समस्या से निबटा जाये। वैसे लोगों को जागरूक होना चाहिए व प्रिंट से ज्यादा पैसे किसी भी सूरत में दुकानदारों को नहीं देना चाहिए।