नागौर। जिलेभर में हर माह करोड़ों का दवा कारोबार हो रहा है। औषधि विभाग के पास इस बिक्री के समस्त आंकड़े उपलब्ध नहीं है और न ही इन दवाओं की आड़ में नकली और प्रतिबंधित दवाओं के धंधे पर रोक लगाने संबंधी कार्रवाई की ही रिपोर्ट है। रिपोर्ट भेजने के दौरान आंकड़ों की खानापूर्ति कर ली जाती है। जिले के नागौर, मकराना, कुचामन, जायल, खींवसर, गोटन, रिया, मेड़ता, डीडवाना, डेगाना, परबतसर, मौलासर एवं नावां आदि क्षेत्रों में छोटी-बड़ी मिलाकर करीब चार हजार दुकानें चिकित्सा विभाग के नियमों का खुला उल्लंघन कर रही है, लेकिन विभाग की कोई कार्रवाई नहीं हो पाने से दवा दुकानदारों के हौसले बुलंद हैं।
जानकारों का कहना है कि जांच अभियान की खानापूर्ति के लिए तीन-चार माह में एक-आध बार किसी दवा दुकान पर चले गए तो यह भी जांच अभियान का हिस्सा बन जाता है। इस संबंध में ड्रग शाखा के अधिकारियों का कहना है कि दुकानों पर किसी तरह की गड़बड़ नहीं है। जबकि क्षेत्र में स्थित कई दुकानों पर अवैध तरीके से दवाएं बेची जा रही हैं। औषध एवं प्रसाधन अधिनियम 1940 के तहत दवा का निर्माण व बिक्री की जाती है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार की ओर से जारी लाइसेंस के बिना औषधियों का स्टॉक, बिक्री या वितरण नहीं कर सकता है। बेची गई प्रत्येक दवा का कैश मेमो देना अनिवार्य है। गत एक साल में ड्रग विभाग को दुकानों की जांच के दौरान ज्यादातर दुकानों पर सब सही मिला। बिना फार्मासिस्ट के दवाओं की दुकान संचालित होने के बाद भी कार्रवाई का आंकड़ा दहाई तक भी नहीं पहुंचा। विभाग के पास जिले भर में दवाओं की दुकानों की गतिविधियां जांच के लिए न कोई ठोस कार्रवाई हुई और न ही दुकानों पर औचक जांच कर फार्मासिस्ट की उपस्थिति या अनुपस्थिति की जांच की गई। जबकि गत दिनों केन्द्र सरकार ने दुकानों में उपलब्ध दवाओं की जांच एवं कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को अलर्ट किया था। इसके बाद भी कार्रवाई नहीं होने से औषधि विभाग की कार्यशैली संदेह के घेरे में आने लगी है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग नागौर के ड्रग इंस्पेक्टर बलदेव चौधरी का कहना है कि फिलहाल इस बारे में कोई शिकायत नहीं आई है। अगर शिकायत मिली तो जरूर कार्रवाई करेंगे।