पटना: बिहार में अब केमिस्ट शॉप पर औषधि निरीक्षक छापा मारने जाएंगे तो वीडियोग्राफर को साथ लेकर जाना होगा अन्यथा वह न तो किसी तरह की जांच कर सकेंगे और न ही सैंपल ले सकेंगे। स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी कर राज्य में दवा दुकानों की छापेमारी के समय वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य कर दिया है। अब तक औषधि निरीक्षक बिना वीडियोग्राफी के दवा दुकान से सैंपल लेकर जांच के लिए ड्रग लैबोरेट्री भेज देते थे। ताजा आदेशों से बेशक भ्रष्टाचार कम होगा और पारदर्शिता बढ़ेगी लेकिन समस्या यह भी है कि न तो स्वास्थ्य विभाग के पास और न सिविल सर्जनों के पास वीडियोग्राफर है।
राज्य में औषधि निरीक्षक कुल 122 हैं जबकि लाइसेंस प्राप्त दवा दुकानें 40 हजार के करीब हैं। विभाग का निर्देश है कि एक औषधि निरीक्षक औसतन प्रति माह पांच दवाओं का सैंपल लेकर राज्य औषधि प्रयोगशाला (ड्रग लेबोरेट्री) में जांच के लिए भेजेगा। वीडियोग्राफरों के बिना 122 औषधि निरीक्षकों द्वारा पिछले सप्ताहभर में किसी भी संस्थान से दवाओं का सैंपल लेने में हिचक देखी जा रही है।
जानकारी के मुताबिक, औषधि निरीक्षकों के हाथ पहले से कमजोर हैं। दवाओं के सैंपल लेने के बाद प्रयोगशाला से सहयोग नहीं मिलता। जितनी दवाओं का सैंपल भेजा जाता है उसमें से 75 प्रतिशत की भी जांच नहीं होती। जिस कारण औषधि निरीक्षक पर्याप्त संख्या में दवाओं का सैंपल नहीं उठा पाते। नतीजा ये कि बाजार में घटिया, मिस ब्रांडेड, गुणवत्ताविहीन और बिना बिल की दवाएं धड़ल्ले से बेची जा रही है। पता चला है कि राज्य की ड्रग लेबोरेेट्री में माइक्रोबायोलाजिकल दवा जांचने की भीव्यवस्था नहीं है।
ड्रग विभाग की मानें तो औषधि निरीक्षकों को अब वीडियोग्राफरों के अनुसार छापेमारी करनी होगी। एक दिन पहले वीडियोग्राफर को बताना होगा कि कब छापेमारी करनी है। इसमें गोपनीयता भंग होने की पूरी संभावना है। कुलमिलाकर, ड्रग इंस्पेक्टरों पर ही निर्भर है कि वह क्या वीडियोग्राफी कराते हैं। आदेश के मुताबिक वीडियोग्राफरों को शुरू से अंत तक हर मिनट और सैकेंड की वीडियोग्राफी करनी होगी तब ही पता चलेगा कि छापेमारी का सच क्या है।