लंदन का एक मरीज एचआईवी संक्रमण से ठीक पूरी तरह ठीक हो गया है। इसकी स्टडी मेडिकल जर्नल द लेंसेट एचआईवी में प्रकाशित की गई है। लंदन के रहना वाला कैस्टिलेजो एचआईवी संक्रमण से पूरी तरह ठीक होने वाला दुनिया का दूसरा शख्स बन गया है। एचआईवी से पूरी तरह ठीक होने वाला पहला शक्स टिमोथी ब्राउन थे, जिन्हें बर्लिन पेशेंट के नाम से जाना जाता है।
टिमोथी ब्राउन की तरह कैस्टिलेजो को भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था। कैस्टिलेजो को anti-retroviral थैरेपी रोकने के बाद वायरस मुक्त होने में 30 महीने से ज्यादा का समय लग गया। 2003 में उन्हें एचआईवी संक्रमण का पता लगा। कैस्टिलेजो अब चालीस साल के हैं। पूरे इलाज में उन्हें सबसे लंबे रिमिशन और बोन मैरो ट्रांसप्लांट से गुजरना पड़ा।
टिमोथी और कैस्टिलेजो दोनों के केसों में डोनर से ली गई स्टेम सेल्स से ट्रांसप्लांट किया गया। हालांकि शोधकर्ता थोड़े चिंतित थे, क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा बोन मैरो ट्रांसप्लाट स्टैंडर्ट थैरेपी की तरह सभी एचआईवी के मरीजों में काम नहीं करेगा। इन मरीजों में ट्रांसप्लाट जोखिम भरा होता है, टिमोथी और कैस्टिलेजो दोनों को कैंसर के इलाज के लिए ट्रांसप्लाट की जरूरत थी, न कि एचआईवी के लिए।
जानकारों का कहना है कि स्टेम सेल्स ट्रांसप्लाटेशन से उन करोड़ों लोगों का इलाज नहीं किया जा सकता, जो एचआईवी से संक्रमित है। यह एग्रेसिव थैरेपी प्राथमिक तौर पर कैंसर की मरीजों को सही करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। हालांकि एचआईवी ड्रग्स बहुत प्रभावशाली है, जिनके जरिए एचआईवी के मरीज लंबी और हेल्दी जिंदगी जी सकते हैं। प्रोफेसर गुप्ता की माने तो यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि यह क्यूरेटिव ट्रीटमेंट बहुत जोखिम भरा है।