जयपुर। दुनिया में बच्चों की मौत का बड़ा कारण बन रही रेयर डिजीज स्पाइनल मस्क्यूलर ए-ट्रापी की दवा को एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने मंजूरी दे दी है। हर दस हजार में से एक बच्चे को स्पाइनल मस्क्यूलर ए-ट्रापी डिजीज होती है। अभी तक उसका कोई इलाज नहीं था। हर महीने सैकड़ों बीमारी की वजह से काल का ग्रास बन रहे थे। जीन परिवर्तन से होने वाली इस डिजीज की दवा बनाने में सफलता तो मिली, लेकिन यह दुनिया की सबसे सबसे मंहगी दवा है।  हाल ही में इसे बाजार में उतारा गया है। इसके एक इंजेक्शन की कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए है। रिसर्चर, कंपनी, विशेषज्ञ और डॉक्टर्स का दावा है कि जैसे-जैसे यह दवा बाजार में जाएगी और लोगों तक पहुंचने लगेगी, कीमत में तेजी से गिरावट होगी। खुशी की बात यह है कि जीन से सम्बन्धित दवाओं में अभी तक सफलता हासिल नहीं हो रही थी, लेकिन अब इस दवा की सफलता के बाद अन्य रेयर डिजीज की दवाओं पर भी काम हो सकेगा।  गौरतलब है कि जेनेटिक डिसआर्डर से न्यूरो सेल जो स्पाइनल कार्ड और मांस पेशियों को सूचना भेजता है, वह नष्ट हो जाता है। बीमारी एसएमएन-वन जीन की खराबी से होती है। इस बीमारी के इलाज पर भी एक दशक से चल रही रिसर्च सफल रही और दवा को एफडीए ने मंजूरी दे दी है।  एसएमएन-1 प्रोटीन जनरेट करता है। एएवी-9 वायरस को इस एसएमएन-1 की फंक्शनल कॉपी के साथ शरीर में डिलीवर किया जाएगा। यह नर्व-सेल्स में जाएगा और प्रोटीन बनाने लगेगा। एक साल में दो इंजेक्शन लगेंगे और पांच साल तक लगवाने होंगे। इसके बाद बीमारी से निजात पाई जा सकेगी। अभी अमेरिका में दवा शुरू कर दी गई है और अगले कुछ ही दिनों में भारत में भी यह दवा आ जाएगी। इस दवा की खोज में 8.7 बिलियन डालर खर्च किए गए हैं।