मुंबई। देश में कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए करीब 20 अलग-अलग दवाओं का मरीजों पर परीक्षण किया जाएगा। इन दवाओं में फेविपिराविर जैसी पेटेंटशुदा एंटी-वायरल दवाएं भी शामिल हैं। घरेलू दवा कंपनियां पेटेंटशुदा दवाओं को घरेलू स्तर पर बनाने का काम शुरू कर चुकी हैं और कुछ पहले ही मंजूरी के लिए देश के दवा नियामक से संपर्क साध चुकी हैं। एंटी-वायरल के अलावा सेपसिवैक (रक्त विषाक्तता या सेप्सिस में इस्तेमाल), इंटरफेरोन अल्फा 2बी (एक बायोलॉजिक) का उपयोग जल्द ही मरीजों पर परीक्षण में किया जाएगा। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि एंटी-वायरल समेत कई दवाओं पर विचार किया जा रहा है। इन परीक्षणों में से कुछ निजी कंपनियां करेंगी, जबकि कुछ अन्य सरकार करेगी। पहले दुनिया की नजर एंटी-वायरल दवा रेमेडिसिविर पर थी, जिसकी खोज अमेरिका की दवा कंपनी जीलीड ने इलोबा के लिए की थी। यह सार्स (सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) और मर्स (मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) जैसे कोरोनावायरस के खिलाफ उपयोगी साबित हुई थी। हाल के कुछ अध्ययनों में इस दवा के शुरुआती परीक्षणों में अच्छे नतीजे आए थे। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि यह दवा चीन में अंतिम परीक्षणों में नाकाम रही। हालांकि जीलीड ने इसे चुनौती दी है। कंपनी ने एक बयान में कहा कि हमारा मानना है कि इस पोस्ट में अध्ययन के अनुपयुक्त पहलुओं को शामिल किया गया है। कम नामांकन के कारण अध्ययन को पहले ही निलंबित कर दिया गया था, इसलिए इसके सांख्यिकी रूप से तथ्यपूर्ण नतीजे नहीं निकाले जा सकते हैं। इस वजह से अध्ययन के नतीजे अधूरे हैं। हालांकि डेटा के रुझान दर्शाते हैं कि जिन मरीजों का जल्द इलाज शुरू हुआ, उन्हें रेमडीसिविर के फायदे मिलने के आसार हैं। हालांकि रेमेडिसिविर को लेकर यह बहस जारी है। मगर बहुत सी भारतीय दवा कंपनियों ने इस दवा को यहां बनाने पर काम शुरू कर दिया है। उद्योग के सूत्रों ने शुक्रवार को संकेत दिया कि इसे लेकर स्थितियां साफ होने तक रेमेडिसिविर का मरीजों पर परीक्षण टाला जा सकता है। लेकिन अन्य दवाओं पर काम जल्द शुरू होगा। जापान में जुकाम के इलाज के लिए एविगन ब्रांड के नाम से बिकने वाली एंटी-वायरल दवा ने भी काफी उत्साहजनक नतीजे दिखाए हैं। जापान में फूजीफिल्म टोयामा केमिकल कंपनी ने कोरोना के खिलाफ इस दवा की कारगरता को लेकर तीसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया है। यहां तक कि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने भी एंटी-रेट्रोवायरल दवा फावीपिराविर का सिंथेसिस पूरा कर लिया है और इसे उस निजी कंपनी को सौंप दिया है, जिसने मंजूरी के लिए भारतीय दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) से संपर्क साधा है। हालांकि गिलीड के पास रेमेडिसिविर के लिए 2035 तक पेटेंट है। कंपनी ने भारत में भी एक पटेंट पंजीकृत कराया है। लेकिन फावीपिराविर के लिए मुख्य पेटेंट 2019 में खत्म हो गया है। उद्योग के एक सूत्र ने कहा कि कुछ ऐसे पूरक पेटेंट हैं, जो इस समय भारत में दवा को सुरक्षित बनाते हैं। लेकिन सरकार मरीजों पर इस दवा का सक्रियता से इस्तेमाल कर रही है। इस बीच मुंबई की ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स ने मंजूरी के लिए डीसीजीआई से संपर्क साधा है। कंपनी ने भी इसे स्वीकार किया। कंपनी ने कहा कि वह तीसरे चरण में दवा का करीब 100 से 150 मरीजों पर परीक्षण करेगी। इसमें मुश्किल से करीब एक महीना लगेगा क्योंकि इस दवा का कोर्स 14 दिन का है। अगर नतीजे संतोषजनक आए तो इस दवा को इलाज के तरीके के रूप में पेश किया जा सकता है और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के प्रोटोकॉल में शामिल किया जा सकता है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि फावीपिराविर के लिए एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट बनाना एक चुनौती था। लेकिन आखिर इसका तोड़ मिल गया और अब इसे भारत में बनाया जा सकता है। एक बार परीक्षण पूरे होने के बाद अगर आईसीएमआर इसकी इलाज के तरीके के रूप में सिफारिश करता है तो अन्य कंपनियां भी यह दवा जल्द बना सकती हैं। भारतीय कंपनियां एंटी-वायरल दवाएं विकसित करने में जुटी हुई हैं। इसमें जाइडस कैडिला, सिप्ला, ग्लेनमार्क, डॉ. रेड्डीज लैब सबसे आगे हैं।