नई दिल्ली: भारत के कुल दवा बाजार का करीब 40 प्रतिशत फिक्स्ड डोज कंबिनेशन (एफडीसी) है, जिसमे उपचार करने के दो या इससे ज्यादा तत्व शामिल होते हैं। इस उद्योग से जुड़े संगठनों को अब डर सताने लगा है कि राष्ट्रीय दवा मूल्य प्राधिकरण (एनपीपीए) उन्हें मूल्य नियंत्रण दायरे में लाएंगे। पिछले महीने दवा मूल्य प्राधिकरण ने एफडीसी को औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) 2013 के दायरे में लाने का प्रस्ताव भेजा था।
प्रस्ताव से ड्रग डिपार्टमेंट को भी अवगत कराया गया है। उद्योग संगठनों की मानें तो मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं की सूची डीपीसीओ 2013 में पहले ही घरेलू बाजार की 18 प्रतिशत दवाएं शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें डर है कि एफडीसी को डीपीओ में लाए जाने से भारतीय दवा उद्योग का आधा मूल्य नियंत्रण दायरे में आ जाएगा। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (आईडीएमए) के पूर्व अध्यक्ष एसवी वीरामणि ने कहा कि एफडीसी के जरिए उपभोक्ताओं को ज्यादा लागत से बचाने में मदद मिलती है। अ यदि इन्हेें मूल्य नियंत्रण दायरे में लाया जाता है तो कंपनियां काम जारी नहीं रख पाएंगी। एफडीसी दवाएं बनाने से फार्मा कंपनियों को हाथ खींचना पड़ेगा। लेकिन ये भी सच है कि एफडीसी को मूल्य नियंत्रण दायरे में लाया जाता है तो मरीजों को सस्ती दवाएं जरूर मिल सकेंगी।