व्यंग्य: साझा कर्म से समुद्र मंथन में जुटे देव-दानवों के सामने एक वक्त ऐसा आया जब दोनों प्रतिद्वंद्वी हो गए। कारण समुद्र की जड़ से अमृत के साथ विष भी उत्पन्न हुआ। सृष्टि हित में शिव ने विष पीकर सुलह करा दी, लेकिन अमृतपान को लेकर दोनों आमने-सामने हो गए। माया महाठगिनी ने दानवों को भ्रमित कर अमृत देवताओं को पिला दिया। कलयुग में ऐसा नहीं है, कर्म करने वाले विष भी बराबर चख रहे हैं और ‘अमृतपान’ भी।
शिवरात्रि यानी एक अगस्त को नीलकंठ के अभिषेक के साथ मैंने राजधानी दिल्ली में दिन भर चली एक लीला भी देखी, जिसमें मंथन भी था, विष भी और अमृत भी। लीला में शामिल सभी पात्रों ने विष भी चखा और अमृतपान से तृप्त भी हुए। मंथन का एक सिरास्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा के हाथ में नजर आया तो दूसरे सिरे को देशभर की नर्से और पहलवान नरसिंह यादव कस कर पकड़े थे। दोपहर की कोशिश में नड्डा नर्सों को हड़ताल नहीं रोक पाए। उधर, नाडा का फैसला भी सरकार की किरकिरी करा सकता था। लेकिन शाम को नीलकंठ की ऐसी कृपा हुई, नड्डा की बात नर्सों को समझ आ गई, नाडा के फैसले से नर ‘सिंह’ बने। इन सबके बीच प्रधानसेवक की छवि ‘नमो नामो’ हो गई।
अब इसे नेपाल स्थित पशुपतिनाथ के आंगन में खड़े होकर प्रधानसेवक द्वारा दान की गई कई सौ किलो चंदन लड़कियों का प्रताप कहें या वाराणसी का आशीर्वाद कि स्वास्थ्य से जुड़े दोनों मामलों में शिवरात्रि के दिन हड़ताल, विरोध-प्रदर्शन, डोपिंग का सारा ‘विष’ बह गया।