नई दिल्ली: लोकतंत्र में मिले अभिव्यक्ति की आजादी और विरोध प्रदर्शन के अधिकार के तहत 7वें वेतन आयोग में वेतन विसंगतियां दूर कर संशोधन की मांग लेकर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम मुताबिक जब दिल्ली में नर्से हड़ताल के लिए सडक़ पर उतरी तो केंद्र सरकार ने एस्मा एक्ट (आवश्यक सेवा संरक्षण अधिनियम)  के तहत पाबंदी लगा दी। साथ ही, ऑल इंडिया गवर्नमेंट फेडरेशन की महासचिव जी.के. खुराना समेत सैकड़ों नर्सों को हिरासत में लेकर दिनभर पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में रख देर शाम ‘आजाद’ किया गया। मजेदार बात ये भी रही, पहली बार एस्मा एक्ट पर ही सही, दिल्ली की केजरीवाल सरकार केंद्र से शीघ्र सहमत होकर पक्ष में खड़ी दिखी।
केंद्र की ओर से जहां स्वास्थ्य सचिव सी.के. मिश्रा ने सहमति पैगाम भेजा और नर्सों से सेवा में लौटने की अपील की तो, दिल्ली सरकार ने भी अपने अधीन अस्पतालों में व्यवस्था न बिगड़े, इसके मद्देनजर नर्स संगठन को सुलह के लिए न्यौता दिया।
इस बीच नर्सों पर एस्मा एक्ट लगाने के चलते दिल्ली की ‘चिंगारी’ से राज्यों में काम कर रहे नर्स संगठनों में गर्मी देखी गई। राजस्थान राज्य नर्सेज एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर एस्मा एक्ट का विरोध दर्ज कराया और नर्सों की मांगों को स्वीकार करने का आग्रह किया। प्रदेश महामंत्री मदनलाल बुनकर ने पत्र में यह भी लिखा कि लोकतांत्रिक परंपरा में सरकार ने दमनकारी राह अपनाई तो असंतोष आक्रोश में तब्दील होते देर नहीं लगेगी।
लंबी नर्सिंग सेवा से निवृत होकर नर्सों का नेतृत्व कर रही है वरिष्ठ नेता जी.के. खुराना की गिरफ्तारी पर एआईजीएनएफ की दिल्ली अध्यक्ष प्रेम रोज सूरी, प्रवक्ता लीलाधर रामचंदानी और वरिष्ठ नेता अनीता पंवार ने कड़ी भत्र्सना की। नर्स संगठन प्रतिनिधियों ने कहा कि देश-विदेश में बड़े-बड़े मंचों से बेटियों के मान-सम्मान, सुरक्षा की बड़ी-बड़ी बाते करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में दिन-रात मरीजों की सेवा करने वाली बेटियों के साथ अन्याय और दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है और वह अनजान बने हुए विदेश यात्राओं में मग्न हैं।
गौर करने वाली बात ये कि कभी डॉक्टर, कभी नर्से, तो कभी स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अन्य कर्मचारी सरकारी नीतियों से विमुख होकर हड़ताल पर आमादा हो जाते हैं और इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है मरीजों को। एक तो रोग से पीडि़त और दूसरा तीमारदारी और चिकित्सा में रुकावट, दर्द को दोगुना कर रहा है। ऐसी भी नहीं कि ‘सेवक’ एकदम से काम छोड़ सडक़ पर आ जाते हैं। नेता-अफसरों के साथ लंबी-लंबी वार्ताएं होती है, चेतावनी, आग्रह, अपील, सब दौर चलता है। बावजूद इसके सुलह नहीं होती और सरकारें निष्फल, नाकामयाब दिखती हैं। वातानुकूलि ठिकानों में रहने वाली ‘सरकार’ और कर्मचारियों के टकराव में आम आदमी, बेबस, असहाय, पीडि़त अवस्था में दर्द से कराह रहा है।