देहरादून: नशा रोकने की दिशा में भले ही सरकार लाख दावे करे लेकिन सच तो यह है कि नशा ग्रामीण युवाओं की जिंदगी से खेल रहा है। यहां तक कि हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट स्तर के बच्चे भी इसकी गिरफ्त में हैं। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि सफेदा, आयडेक्स, मूव का भी नशे के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। इस तरह के मामले आने के बाद पुलिस कई बार अभिभावकों के साथ बैठक कर चुकी है। बावजूद इसके नतीजा शून्य है।
नशे के आदी युवाओं को मनोचिकित्सा के लिए देहरादून ले जाना पड़ता है । पहाड़ों के ग्रामीण अंचलों में भी नशे का कारोबार तेजी से फैल रहा है। ताजा आंकडें इसकी तस्दीक कर रहे हैं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक वर्ष 2015 से अब तक गांजा, अफीम, भांग, स्मैक और शराब के मामले में 343 अपराधियों की पुलिस ने गिरफ्तारी की है।
2015 में एनडीपीएस के 10 मामले दर्ज किए गए थे जबकि वर्ष 2017 के शुरुआती महीनों में 24 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। वर्ष 2016 पर नजर दौड़ाएं तो 57 मामले दर्ज हुए। नशाखोरी के मामलों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। पहले शहरों में अधिकता दर्ज की जाती थी। ग्रामीण क्षेत्रों में मामले बढऩे की बड़ी वजह यह भी है कि पुलिस के बजाय यहां पटवारी व्यवस्था संचालित हो रही है। पटवारी क्षेत्र में ग्राम सभा और गांवों की संख्या अधिक होती है और ऐसे में कई अपराधी चकमा देकर बच निकलते हैं। बहरहाल इन मामलों को लेकर प्रशासन जागरुकता अभियान संचालित तो करता है, लेकिन ये अभियान भी शहरों तक सिमट कर रह गए हैं। शहरों में स्कूलों में इस प्रकार के कार्यक्रमों के जरिए विद्यार्थियों तक संदेश पहुंचाया जा रहा है। पौड़ी जनपद में नशे और नशेडिय़ों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही हो लेकिन स्वास्थ्य विभाग का जनपद में एक भी नशा मुक्तिकेंद्र स्थापित नहीं है।