गोरखपुर। प्रदेश में नशे की दवाओं के कारोबार में तेजी आई है। एनडीपीएस श्रेणी में शामिल दवाओं की बिक्री तेजी से बढ़ी है। ड्रग इंस्पेक्टर जय सिंह ने बताया कि शासन ने निर्देश जारी कर दवा कारोबारियों की सूचना मांगी है। ज्यादातर दवा कारोबारी सूचना देने में आनाकानी कर रहे हैं। इसे लेकर अब जांच की तैयारी की जा रही है। दवा के रिकॉर्ड में हेरफेर मिलने वालों के लाइसेंस निरस्त किए जाएंगे। केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री दिलीप सिंह ने बताया कि इस आदेश में कई तरह की खामियां हैं। जो कारोबारी कंप्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग करते हैं वह तो रिकॉर्ड हर सप्ताह दे सकेंगे। जिले में बड़ी संख्या में ऐसे दवा विक्रेता हैं जो कि ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं। वहां कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं है। ऐसे दुकानदार के सामने संकट है।

ड्रग विभाग की कार्रवाई में भी इसकी पुष्टि हुई है। इसे देखते हुए शासन ने हर जिले से 10 बड़े फुटकर विक्रेताओं की खरीद व बिक्री का रिकॉर्ड की जानकारी मांगी है। बताया जाता है कि इनको साइकोट्राफिक सबस्टेंस यानी नशीली दवाएं कहा जाता है। इन्हें चिकित्सक इलाज के दौरान मरीज को देता है। एनडीपीएस श्रेणी की इन दवाओं का हिसाब थोक और फुटकर विक्रेताओं को खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन को देना रहता है।

एनडीपीएस श्रेणी की दवाओं के निर्माता, सी एंड एफ, डिस्ट्रिब्यूटर, औषधि का नाम, फर्म का नाम, पता, ई-मेल आइडी, मोबाइल नंबर, लाइसेंस की जानकारी औषधि निरीक्षक को देनी होती है। हर सप्ताह सोमवार को ड्रग विभाग को खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन को जानकारी ई-मेल पर भेजी जानी थी। लेकिन इस पर अमल नहीं हो सका। इसे देखते हुए ड्रग कमिश्नर एके जैन ने इस पर सख्त रूख अख्तियार किया। उन्होंने हर जिले के सहायक आयुक्त औषधि और ड्रग इंस्पेक्टर से 10 बड़े फुटकर विक्रेताओं के एनडीपीएस दवाओं की खरीद और बिक्री का रिकॉर्ड मांगा है। इसे 12 अगस्त तक भेजना है।

गोरखपुर जिले के थोक और फुटकर के करीब छह हजार कारोबारी हैं। इनमें से ज्यादातर ने दवाओं का रिकॉर्ड ड्रग विभाग को नहीं सौंपा है। जबकि इसी वर्ष जनवरी में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन ने नशीली दवाओं के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए फुटकर और थोक कारोबारियों को दवाओं के खरीदने और बेचने के साथ सभी रिकॉर्ड मांगे थे। इसका कारोबारियों ने विरोध शुरू करते हुए रिकॉर्ड नहीं दिया।